शहीद क्रांतिवीर वीर नारायण सिंह के बलिदान दिवस का आयोजन महाकौशल इतिहास परिषद के तत्वाधान में होता है

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छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय आदिवासी आंदोलन विषय पर प्रथम पी-एच.डी. बसुबंधु दीवान से :- आचार्य रमेंद्र नाथ मिश्रमध्य प्रदेश और गोंडवाना के जनजाति गौरव रानी दुर्गावती पर सर्वप्रथम पी-एच.डी. जगत बहादुर सिंह ने किया।सन 1857 की क्रांति के शहीद क्रांतिवीर वीर नारायण सिंह पर सर्वप्रथम पी-एच.डी. डॉ. श्रीमती सुनीत मिश्र ने किया।बस्तर के क्रांतिकारी विद्रोह से संबंधित विषय पर डॉक्टर रामकुमार बेहार ने काम किया।मध्य प्रदेश शासन, ग्रंथ अकादमी द्वारा तथा छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पश्चात सितंबर 2000 में जनसंपर्क विभाग एवं संस्कृति विभाग द्वारा वीर नारायण सिंह के शोध ग्रंथ का प्रकाशन किया गया।

ज्ञातब्य हो कि पंडित रविशंकर शुक्ल वि वि के ,,वीर नारायण सिंह ,, प्रशासनिक भवन का नाम तत्कालीन कुलपति डा रत्न कुमार ठाकुर जी के कार्य काल में रखा गया था l इनका विमोचन उपराष्ट्रपति भैरव सिंह शेखावत द्वारा प्रचलित नाटक ,,जानता राजा,, के कार्यक्रम स्थल के अंतर्गत पुलिस ग्राउंड में किया गया, जहाँ लगभग 50,000 लोग उपस्थित थे।इन सभी शोध कार्यों एवं प्रकाशनों का संपादन आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र के मार्गदर्शन में हुआ, जो पिछले 50 वर्षों से शहीद वीर नारायण सिंह बलिदान दिवस मनाते आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ शासन ने भी इनके योगदान का सम्मान किया है।

नया रायपुर में निर्मित शहीद वीर नारायण सिंह संग्रहालय—जिसका उद्घाटन माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा किया गया—इन्हीं की परिकल्पना एवं सहयोग से साकार हुआ है।‘बस्तर मुक्ति संग्राम’ पुस्तक लिखकर डॉ. हीरालाल शुक्ल ने जनजाति गौरव को विशेष रूप से रेखांकित किया।

वस्तुतः, इन दोनों विद्वानों के प्रयासों से देश-विदेश में मध्य प्रदेश/छत्तीसगढ़ के जनजातीय गौरव को नई पहचान मिली।1983 सोनाखान में वहां के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वंशजों के उन्नयन हेतु प्रयास सर्व पर्यटन की दृष्टि से बिकास हेतु निरंतर प्रयास हो रहे हैं।क्रांतिवीर नारायण सिंह का कोई चित्र उपलब्ध नहीं था सम्बलपुर, दिल्ली, भोपाल, नागपुर, रायपुर एवं उनके परिजनों के मध्य शासकीय अभिलेखों में अन्वेषक का प्रयास किया गया पर नहीं मिला तब उनका काल्पनिक चित्र आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र जी ने चित्रकार अनिल कठोटे से बनवाया सोनाखान में उनके वंशजों से जिन्होंने उस समय के पारिवारिक परिवेश के बारे में जानकारी दी थी तद्‌नुसार घोड़े पर सवार क्रांतिवीर नारायण सिंह जो हाथ में तलवार लिए हुए थे। उस चित्र को भी रतनपुर के राजा के द्वारा जमीदारों को जो सिरोपाव से सम्मान किया जाता था उसके अनुरुप बनवाया गया। कलगी पगड़ी, अंगरखा धोती, पनही आधार पर बनवाया गया और उसी के अनुरूप जयस्तंभ्य चौक की प्रतिमा सोनाखान की प्रतिमा और नया रायपुर में शहीद वीर नारायण सिंह संग्राहलय में लगायी गई प्रतिमा जिसका अनावरण माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया था सोनाखान के जमीदार के वंशज राजेन्द्र सिंह दीवान से चर्चा कर मूर्तरूप दिया गया।

ज्ञात हो कि इस संग्रहालय के राज्यस्तरीय समिति के अध्यक्ष आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र जी वरिष्ठ इतिहासकार थे उनके सुझावों और प्रयासों से ही यह संभव हो सका।इतिहासकार आचार्य रमेंद्र नाथ मिश्र जी के कार्यों को देखते हुए छत्तीसगढ़ शासन ने भी सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया है l1987 में केन्द्र सरकार द्वारा जो डाक टिकट निकाला गया उसका विवरण आचार्य मिश्र जी एवं प्रो जे. आर. काम्बले ने इतिहास विभाग पं. रविशंकर शुक्ल वि. वि. की ओर से भेजा था किन्तु उन्होंने जो टिकट छापा गया है वह गलत था जिसके बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री को अवगत कराया था क्योकि डाक टिकट में तोप से उड़ाते हुए किसी किसान को दिखाया गया था जबकि 9 दिसम्बर 1857 के पत्र के आधार पर 10 दिसम्बर 1857 को क्रांतिवीर नारायण सिंह को रायपुर में फांसी दी गई।इसी तिथि के आधार पर ही 10 दिसम्बर को प्रति वर्ष शहीद वीर नारायण सिंह बलिदान दिवस का आयोजन महाकोसल इतिहास परिषद् एवं रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय इतिहास विभाग द्वारा मनाया जाता रहा है।इसी परिप्रेक्ष्य हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए की डॉक्टर रामकुमार बेहार ने बस्तर भूषण पण्डित केदार नाथ ठाकुर जी इतिहासकार के परम्परा को आगे बढ़ाया उन्होंने बस्तर अंचल पर बहुत काम करवाया व स्वयं भी कार्य किया। ऊषा ठाकुर, रामविजय शर्मा, पतराम साहू आदि।

2025 भारतीय में जनजातीय गौरव वर्ष के रूप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संकल्प के अनुरूप मनाया जा रहा है। भगवान बिरसा मुण्डा, वीर नारायण सिंह, रानी दुर्गावती एवं उनके वंशज, रघुनाथ शाह, शंकर शाह, वेंवट राव बापू राव आदि क्रंतिकारियों ने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर दिया उनको शत-शत नमन ।



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