पंचायत चुनाव ड्यूटी के दौरान मौत, 30 लाख रुपये के मुआवजा न देने का आदेश रद्द

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प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश में माना कि उत्तर प्रदेश कोविड लैब द्वारा कोविड-19 परीक्षण के संबंध में सकारात्मक रिपोर्ट पर तब तक संदेह नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि यह जाली दस्तावेज साबित न हो जाए। याची पत्नी ने 2021 में पंचायत चुनाव ड्यूटी पर रहते हुए कोविड-19 से संक्रमित होने के कारण अपने पति की मृत्यु के मुआवजे के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।

तेज बुखार और कोविड जैसे अन्य लक्षणों के कारण याची राजकुमारी के पति को इटावा के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्हें कोविड परीक्षण कराने की सलाह दी गई। परीक्षण में कोविड-19 की पुष्टि हुई और उसके बाद उनकी मृत्यु हो गई। याची ने 1 जून 2021 के सरकारी आदेश के तहत मुआवजा मांगा, जिसमें “चुनाव ड्यूटी के एक महीने के भीतर मरने वाले कर्मचारियों को 30 लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने का प्रावधान है।“ चूंकि मुआवजे के लिए उसका अभ्यावेदन इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि कोई कोविड परीक्षण नहीं किया गया था और याचिकाकर्ता के दावे का समर्थन करने के लिए उसके पास कोई रिपोर्ट नहीं थी। इसलिए याची ने याचिका दायर की।

न्यायमूर्ति अजीत कुमार और न्यायमूर्ति स्वरूपमा चतुर्वेदी की पीठ ने कहा कि यद्यपि प्रतिवादियों द्वारा यह दावा किया गया कि मृतक की कभी भी कोविड जांच नहीं की गई थी, लेकिन डॉ. भीमराव अंबेडकर संयुक्त अस्पताल (पुरुष) इटावा की एक रिपोर्ट, जिसमें उसे कोविड पॉजिटिव घोषित किया गया था, वह रिकॉर्ड में उपलब्ध है। यह देखते हुए कि दो डॉक्टरों ने मृतक की रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया था, अदालत ने माना कि उन्होंने रिपोर्ट के अस्तित्व से इनकार नहीं किया था या उसे जाली नहीं कहा था। अदालत ने कहा कि डॉक्टर केवल रिपोर्ट तैयार होने के समय ही वहां मौजूद थे, लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार नहीं किया था कि मृतक अस्पताल का मरीज था।

कोर्ट ने कहा कि प्रतिवादी प्रति शपथपत्र में केस आईडी पर विवाद नहीं करते हैं। चूंकि दोबारा नमूना लेने के लिए एंटीजन सलाह संबंधित यूपी कोविड लैब की कम्प्यूटर जनित पर्ची थी, इसलिए इसे किसी डॉक्टर के हस्ताक्षर की आवश्यकता नहीं हो सकती थी और इसलिए, केवल इसलिए कि इस पर किसी डॉक्टर के हस्ताक्षर नहीं थे, यह जाली दस्तावेज़ नहीं बन जाता।

कोर्ट ने माना कि जब मरीज का विवरण पहले से ही रिकॉर्ड में था, तो प्रतिवादियों को याचिकाकर्ता के दावे को खारिज करने से पहले अस्पताल से इसकी पुष्टि करनी चाहिए थी। कोर्ट ने सरकार को याची के मुआवजे के दावे पर पुनर्विचार करने का निर्देश देते हुए मुआवजा देने से इंकार करने के आदेश को रद्द कर दिया।

 



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