पाटन। कुर्मीगुंडरा धान खरीदी केंद्र में तौलक (धान तोलने) के ठेका वितरण को लेकर गंभीर विवाद की स्थिति निर्मित हो गई है। किसानों और आवेदकों ने केंद्र के अध्यक्ष एवं प्राधिकृत अधिकारी दानीराम वर्मा पर मनमानी करने, नियमों को दरकिनार कर ठेका देने और प्रक्रिया में पारदर्शिता न रखने का आरोप लगाया है।
विज्ञापन जारी, पाँच आवेदकों ने जमा किए थे फार्म — फिर भी मनपसंद व्यक्ति को देने की जिद
धान खरीदी तौल कार्य हेतु समिति द्वारा पूर्व में मुनादी और विज्ञापन जारी किया गया था, जिसके बाद पाँच लोगों रमेश साहू, महेश साहू, कृष्णा साहू, मुकेश वर्मा और नीलेश्वर ठाकुर ने ठेका हेतु आवेदन जमा किए थे।
लेकिन आरोप है कि अध्यछ दानीराम वर्मा शुरुआत से ही रमेश साहू को सीधे जिम्मेदारी देने पर अड़े थे, जिसके कारण बैठक तीन बार टली, और चौथी बैठक में भी वही जिद जारी रही। इससे अन्य आवेदकों और उपस्थित किसानों में नाराजगी बढ़ गई।
“अगर पहले से तय था तो विज्ञापन क्यों?” — आवेदकों ने उठाए सवाल
अन्य चार आवेदकों ने कहा कि “जब ठेका सीधे रमेश साहू को ही देना था, तो विज्ञापन और मुनादी की क्या आवश्यकता थी? पाँच आवेदन जमा हुए थे, तो टेंडर प्रक्रिया के तहत कम दर वाले को जिम्मेदारी देना चाहिए था।”
आवेदकों ने यह भी कहा कि समिति पहले से ही लाखों के कर्ज में डूबी है, ऐसे में टेंडर प्रक्रिया से कम दर वाले को ठेका मिलने पर समिति को आर्थिक फायदा होता, लेकिन अध्यछ के एकतरफा निर्णय ने पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सत्ता का घमंड?—सवाल पूछने पर धमकी देने का आरोप
नीलेश्वर ठाकुर ने बताया कि जब उन्होंने अध्यछ से प्रक्रिया के बारे में सवाल किया, तो अध्यक्ष ने नाराजगी जताते हुए कहा “सत्ता हमारा है… मैं जो चाहूँगा वो होगा। अभी दानीराम से बात नहीं, अध्यछ से बात कर रहे हो। ज्यादा बोलोगे तो रिपोर्ट लिखाकर जेल भेज दूँगा।”
किसानों ने इस बयान को अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि जो पद किसानों की सहायता के लिए है, वही सवाल पूछने पर धमकी दे रहा है।
रमेश साहू पर पूर्व में भी ‘सालटेज’ का आरोप
आवेदक मुकेश वर्मा ने आरोप लगाया कि रमेश साहू पहले भी तौलक का ठेका कर चुका है, जिसमें सालटेज की शिकायतें आई थीं।ऐसी स्थिति में बिना किसी प्रक्रिया के दोबारा उसी को ठेका देना कई संदेह को जन्म देता है।
श्री वर्मा ने कहा कि अध्यक्ष दानीराम वर्मा को कभी किसी किसान के लिए लड़ते नहीं देखा। ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष की जिम्मेदारी क्यों दी गई, यह किसानों की समझ से परे है।”
किसानों में गहरी नाराजगी — “अगर अध्यक्ष को सवाल पूछने पर जेल भेजने की धमकी देनी है तो फिर किसान किसके पास जाए?”
किसानों का कहना है कि प्राधिकृत अधिकारी की यह मनमानी और धमकी भरी कार्यशैली खेतिहर कामगारों के सम्मान को ठेस पहुँचाती है। किसानों ने कहा कि “सरकार द्वारा नियुक्त अध्यक्ष ही अगर किसानों को डराने की बात करे, तो इससे बुरी स्थिति और क्या हो सकती है?”

