
लीजिये, मरिया कोरीना मचादो ने अपना नोबेल पुरस्कार ट्रम्प साहेब को समर्पित भी कर दिया। दरअसल, इसमें चौंकाने वाली या कोई नई बात नहीं है ।
मरिया कोरीना मचादो साम्राज्यवादी दुनिया की कड़ी हैं। तानाशाही के खिलाफ उनकी लड़ाई को समर्धन एक बात है पर वे दक्षिण पंथ के रथ पर सवार होकर निजीकरण से लेकर इस्राइल के नरसंहार के पक्ष में खड़ी होती हैं, गंभीर सवाल वहां से शुरू होते हैं।
मरिया कोरीना मचादो इजराइल को स्वतंत्रता, नवाचार और प्रगति का प्रतीक मानती हैं। 2021 में इजराइल की स्वतंत्रता दिवस पर उन्होंने कहा, इजराइल उदारवाद और बाजार अर्थव्यवस्था के मूल्यों का उदाहरण है। 2019 में उन्होंने बेंजामिन नेतन्याहू को बधाई दी और इजराइल को पश्चिमी मूल्यों का रक्षक बताया। उनका मानना है कि वेनेजुएला का संघर्ष इजराइल के संघर्ष जैसा है।
मरिया कोरीना मचादो निजीकरण की पक्की पैरोकार हैं उनका कहना है राष्ट्रीयकरण ने हमारी अर्थव्यवस्था को नष्ट किया; निजीकरण और मुक्त बाजार ही समृद्धि लाएंगे।
जो मरिया कोरीना मचादो को नोबेल मिलने पर नाच रहे ,जरा बताएं उन्होंने कभी फिलिस्तीन या गाजा के नागरिकों के प्रति सहानुभूति या समर्थन का कोई बयान भी दिया ?
कल तक हमारे देश में सात हिंदी साहित्यकारों में से किसी को नोबेल मिलने के बाजे बजाये जा रहे थे। पर झटका लगा! अब ये कमी मरिया कोरीना मचादो के लिए बजा कर की जा रही है, ये भूलते हुए कि वे दक्षिणपंथी, उदारवादी और ट्रंप समर्थक हैं ।
मरिया कोरीना मचादोभरपूर निजीकरण चाहती हैं ।
इस्राइल और बस इस्राइल उनके मन में है, वे 2009 में चावेज शासन द्वारा तोड़े गए वेनेज़ुएला-इजराइल राजनयिक संबंधों को बहाल करेंगी।
यरुशलम में वेनेजुएला के दूतावास को देखना चाहती हैं ।
पर उधर उनको पुरस्कार मिला और इधर हमारे देश में उनको गांधीवादी घोषित कर तस्वीरें जड़ दी गईं।
जरा सोचिये गांधीजी की इस्राइल पर क्या सोच थी और क्या स्टैंड था। दोनों में जमीन आसमान का फर्क ।
दोनों के आर्थिक कार्यक्रम और विचार बिलकुल उलट ।
दक्षिणपंथी विचारों, बाजारवादी सोच ,निजीकरण की समर्थक और ट्रम्प को शांति नोबेल समर्पित करने वाली
विश्वशांति का ध्वज कितना उठा पाएंगी, पुनर्विचार करिये, सर्टिफिकेट देने की हड़बड़ी क्या है ? चलिए ,सोचिये और इस बीच कहीं से कैलाश सत्यार्थी जी को ढूंढकर बताइये इस देश में बच्चों के कैसे -कैसे समाचार आ रहे !

