Lens Exclusive रायपुर का मुस्लिम समाज क्यों है आक्रोश में

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Lens Exclusive: छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पुलिस ने मंगलवार 23 दिसंबर 2025 की तड़के 3 बजे से कार्रवाई की। अवैध घुसपैठियों और अप्रवासियों की तलाश के नाम पर पुलिस ने मुख्य रूप से मुस्लिम बहुल इलाकों में ताबड़तोड़ दबिश दी, जहां घरों में सो रहे लोगों को बेरहमी से उठाया गया। महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों तक को अमानवीय तरीके से ट्रीट किया गया, जिससे पूरे समाज में कड़ा आक्रोश फैल गया है।

मुस्लिम समाज इस कार्रवाई का पुरजोर विरोध कर रहा है, इसे सामुदायिक भेदभाव और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन बता रहा है, मुस्लिम समाज का कहना है की ये उनके निजता के अधिकार का हनन है। घटना के अनुसार, पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स ने सुबह के समय मौदहापारा, नहरपारा, बैजनाथपारा, राजातालाब, संजय नगर, टिकरापारा, संतोषी नगर, ईदगाहभाठा, आमापारा, ताजनगर, तरुण नगर, मोवा, गाजीनगर, बैरनबाजार, मोमीनपारा, पारस नगर, पंडरी, सड्डू ईरानी डेरा और शक्तिनगर जैसे इलाकों में छापे मारे।

घरों के अलावा होटल, लॉज, रेस्टोरेंट और धार्मिक स्थलों के आसपास रहने वालों को भी हिरासत में लिया गया। पीड़ितों में होटल कारोबारी, प्रिंसिपल, अधिकारी,बुजुर्ग, व्यापारी, कर्मचारी, छात्र, महिला और ड्राइवर शामिल थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, करीब 120 लोगों को हिरासत में लिया गया, जिनमें से 115 को रिहा कर दिया गया, लेकिन 5 अभी भी कस्टडी में हैं ये उत्तर प्रदेश से आए मुस्लिम व्यापारी बताए जा रहे हैं।

पीढ़ियों से रायपुर रहने वाले मुस्लिमों से भी पूछताछ

मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों का कहना है कि पुलिस की यह कार्रवाई न सिर्फ असंवेदनशील थी बल्कि लोकतंत्र की भावना के खिलाफ थी। एक पीड़ित परिवार ने बताया ‘सुबह तड़के पुलिस घर में घुसी, महिलाओं को नाइटी में ही घसीटकर ले गई, बच्चों को ठंड में खड़ा किया और बुजुर्गों को अपमानित किया। फोन जब्त कर लिए गए, दवाई तक नहीं लेने दी गई। क्या यह घुसपैठियों की तलाश है या मुस्लिम समाज को डराने की साजिश?’ समाज के जिम्मेदार लोगों जैसे प्रिंसिपल, अधिकारी, अधिवक्ता, लॉ छात्र और फ्रीडम फाइटर की फैमिली को भी निशाना बनाया गया, जो पीढ़ियों से रायपुर में रह रहे हैं।

पुलिस के दावे और मुस्लिम समाज में नाराजगी

पुलिस का दावा है कि यह कार्रवाई मई 2025 में गठित स्पेशल टास्क फोर्स का हिस्सा है, जो बांग्लादेशी, पाकिस्तानी और रोहिंग्या जैसे अवैध अप्रवासियों की तलाश के लिए बनी है। एक अखबार में छपी खबर के मुताबिक़ एसपी डॉ. लाल उमेद सिंह ने कहा कि ‘आधार, पैन, वोटर आईडी और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों की जांच की जा रही हैऔर संदिग्धों को बॉर्डर पर छोड़ा जाएगा। उन्होंने आईएमओ ऐप की चैट्स की तकनीकी जांच का हवाला दिया, जो बांग्लादेश में प्रचलित है। लेकिन समाज पूछ रहा है – क्या नोटिस या समन जारी करने की बजाय आधी रात को घरों में घुसना जरूरी था? क्या यह सिर्फ मुस्लिम इलाकों तक सीमित क्यों थी?

द लेंस ने सुनी पीड़ित पक्ष की बात

द लेंस की टीम ने बैजनाथपारा पहुंचकर पीड़ितों से बात की, जहां मुस्लिम समाज में गुस्सा साफ दिखा। एक स्थानीय निवासी ने कहा ‘हम कानून का सम्मान करते हैं, पूछताछ से कोई समस्या नहीं। लेकिन तरीका इतना बर्बर क्यों? यह हमारे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा रहा है।’ लोगों के सोशल मीडिया आईडी की भी जांच की गयी, उनसे इंस्टाग्राम फेसबुक आईडी लेकर एक्टिविटी की जांच की गयी। समाज की मांग है कि कार्रवाई की निष्पक्ष जांच हो, निर्दोषों को सम्मानजनक रिहाई मिले और भविष्य में मानवीय तरीके अपनाए जाएं। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो यह सामान्य बन जाएगा और किसी भी समाज को प्रभावित कर सकता है। मुस्लिम समाज ने एकजुट होकर संवैधानिक तरीके से विरोध जताने का ऐलान किया है।

क्या है IMO एप्प ?

गौरतलब है कि IMO एक लोकप्रिय इंस्टेंट मैसेजिंग और वीडियो कॉलिंग ऐप है, जो कम डेटा खपत के साथ मुफ्त टेक्स्ट, वॉयस और वीडियो चैट की सुविधा प्रदान करता है। यह विशेष रूप से बांग्लादेश और कुछ अन्य देशों में बहुत प्रचलित है। भारत सरकार ने मई 2023 में IMO सहित 14 मैसेजिंग ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया, क्योंकि ये ऐप्स जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा पाकिस्तान से कोडेड मैसेज भेजने और संचार के लिए इस्तेमाल हो रहे थे।

इन ऐप्स में एंड-टू-एंड एनक्रिप्शन होने से ट्रैकिंग मुश्किल थी और भारत में इनके प्रतिनिधि नहीं थे। हालांकि 2025 में भी कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार ये ऐप्स प्ले स्टोर पर उपलब्ध हैं और पूरी तरह ब्लॉक नहीं हो पाए लेकिन आधिकारिक रूप से बैन है। हालिया पुलिस कार्रवाइयों में IMO का इस्तेमाल संदेह का आधार बन रहा है क्योंकि यह कम डेटा में काम करता है और ट्रेस करना कठिन है लेकिन भारत सरकार या राज्य सरकार की कोई अलग एडवाइजरी नहीं है।



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