भारतीय जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड ने बिहार की नीतीश सरकार में मंत्री और छत्तीसगढ़ में पार्टी के प्रभारी नितिन नबीन को पार्टी का राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष चुना है, और यह इस बात का पक्का संकेत है कि आने वाले महीनों में उन्हें पूर्ण अध्यक्ष बना दिया जाएगा।
नितिन नबीन अभी सिर्फ 45 साल के हैं और 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद से वे अब तक के सबसे कम उम्र के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे। पार्टी उन्हें युवाओं के प्रतिनिधि के तौर पर देख रही है, लेकिन वास्तविकता यही है कि उनकी नियुक्ति ने भाजपा के बाहर ही नहीं, बल्कि भाजपा के भीतर भी लोगों को चौंकाया है।
इधर, यह भी चर्चा थी कि आरएसएस की भी अपनी कुछ पसंद थी। हालांकि यह तो तय ही है कि भाजपा में कोई भी फैसला प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह की मर्जी के बिना नहीं होते। इससे न केवल बदली हुई भाजपा को, बल्कि आरएसएस के साथ उसके बदलते रिश्ते को भी समझा जा सकता है।
खुद को पार्टी विद द डिफरेंस बताने वाली भाजपा हमेशा कांग्रेस और दूसरे क्षेत्रीय दलों के ढांचे और संगठन को लेकर हमलावर रहती आई है, लेकिन नितिन नबीन की नियुक्ति उसे इन्हीं सवालों के घेरे में खड़ा कर दे रही है। प्रधानमंत्री मोदी सहित समूची भाजपा वंशवाद को लेकर हमलावर रहती है, लेकिन भाजपा के नए कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन खुद वंशवादी राजनीति की ही पैदाइश हैं। उनके पिता किशोर सिन्हा भाजपा से कई बार विधायक रहे थे, और उनके निधन के बाद ही पार्टी ने उन्हें आगे बढ़ाया।
यही नहीं, दूसरे दलों में आंतरिक लोकतंत्र को लेकर सवाल उठाने वाली भाजपा यह बताने की स्थिति में नहीं है कि आखिर नितिन नबीन का चयन किस पारदर्शी लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत किया गया।
उनके कायस्थ होने को भी भाजपा की कमान सौंपने के एक कारण के तौर पर देखा जा रहा है, तो कुछ आंकड़ों पर गौर करने की सचमुच जरूरत है। वास्तव में उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में कायस्थों की आबादी अपेक्षाकृत दूसरे राज्यों से अधिक है। पश्चिम बंगाल में कुछ महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं।
भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, कुशाभाऊ ठाकरे के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहने के बाद भाजपा का चेहरा बदलता गया है। लेकिन पिछले अन्य अध्यक्षों, बंगारू लक्ष्मण, जना कृष्णमूर्ति, वेंकैया नायडू, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, अमित शाह यहां तक कि निवर्तमान जे पी नड्डा की तुलना में नितिन नबीन वरीयता में काफी पीछे हैं।
दरअसल इसीलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या नितिन नबीन मोदी-शाह की छाया से इतर पार्टी और राष्ट्रीय राजनीति में अपनी खुद की कोई पहचान कायम कर पाते हैं?

