अब चीन चांदी को लेकर राजनीति कर रहा है। चांदी के भाव वैसे ही बहुत ज्यादा बढ़ गए हैं – एक साल में ही लगभग ढाई गुना से भी ज्यादा! लेकिन 1 जनवरी के बाद चांदी आसमान छूएगी। चांदी के दाम किसी भी ऊंचाई को छू सकते हैं। चांदी 5 लाख या 7 लाख रुपये किलो भी हो सकती है।
चांदी की मांग बहुत ज्यादा है, सप्लाय कम
सोलर पैनल, इलेक्ट्रिक गाड़ियों, मोबाइल-कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स और नई टेक्नोलॉजी में चांदी का उपयोग बहुत होता है। ये सब चीजें दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही हैं।
इसलिए चांदी की जरूरत सालाना हजारों टन बढ़ गई है। दुनिया में हर साल चांदी की खानों से निकलने वाली मात्रा और रिसाइकलिंग से मिलने वाली चांदी, मांग के मुकाबले कम पड़ रही है। पिछले 5 साल से हर साल चांदी की शार्टेज चल रही है। जितनी चांदी इस्तेमाल हो रही है, उतनी मिल नहीं रही। स्टॉक कम हो रहे हैं और दाम ऊपर चढ़ रहे हैं।
महंगाई, युद्ध-तनाव और डॉलर की कमजोरी से लोग सोना-चांदी जैसे सुरक्षित चीजों में पैसा लगा रहे हैं। चांदी सोने से सस्ती होने से इसमें ज्यादा तेजी आई।
चीन दुनिया का सबसे बड़ा चांदी रिफाइनर है और ग्लोबल सप्लाई का दो तिहाई कंट्रोल करता है। पहले चीन अपनी अतिरिक्त चांदी दुनिया को एक्सपोर्ट करता था, जिससे दाम कंट्रोल में रहते थे, लेकिन 1 जनवरी 2026 से चीन ने नया नियम लागू किया।
अब चीन में चांदी केवल वे बड़ी कम्पनियां ही एक्सपोर्ट कर सकेंगी जो सालाना कम से कम 80 टन चांदी उत्पादित करती होंगी. इससे छोटी कंपनियां बाहर हो जाएंगी। दुनिया में चांदी की सप्लाई और कम हो जाएगी. शायद 2500-5000 टन सालाना कमी और बढ़ जाएगी। चीन में जो भी चांदी होती है उसका बहुत बड़ा हिस्सा वह खुद ही रख लेता है। अपनी घरेलू इंडस्ट्री के लिए।
ये कदम चीन के ट्रेड वॉर का हिस्सा है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों पर दबाव बनाने के लिए चीन इसका उपयोग करने लगा है क्योंकि चांदी अब क्रिटिकल मिनरल मानी जाती है।
शॉर्टज है तो कम्पनियां डर रही हैं कि चांदी और कम मिलेगी, इसलिए अभी से खरीदारी बढ़ गई और दाम रॉकेट की तरह ऊपर चढ़ गए। चीन की ये पॉलिसी सबसे बड़ी वजह है कि 2025 के अंत में चांदी के दाम रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं।
चीन ने चांदी को आवश्यक और अति आवश्यक धातुओं में शामिल किया है। चीन की मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स (MOFCOM) ने इसे रिसोर्स प्रोटेक्शन और एनवायरनमेंटल प्रोटेक्शन के नाम पर यह कदम उठाया है।
लिथियम-आयन EV बैटरी में चांदी का उपयोग हो रहा है – मुख्य रूप से इलेक्ट्रिकल कनेक्टर्स और सर्किट्स में, प्रति व्हीकल 25-50 ग्राम।
भविष्य में सैमसंग जैसी कंपनियों की सॉलिड-स्टेट बैटरी टेक्नोलॉजी में सिल्वर-कार्बन एनोड का इस्तेमाल हो सकता है, जिसमें प्रति सेल 5 ग्राम सिल्वर लग सकता है – यानी एक 100 kWh बैटरी पैक में लगभग 1 किलोग्राम सिल्वर। लेकिन यह टेक्नोलॉजी अभी कमर्शियल स्केल पर नहीं है, और अगर 20% EVs में अपनाई जाए तो सालाना डिमांड 16,000 टन तक बढ़ सकती है. फिलहाल मुख्य डिमांड सोलर और इलेक्ट्रॉनिक्स से है।
चीन इसे जियोपॉलिटिकल लीवरेज के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, जैसे पहले रेयर अर्थ्स, गैलियम, जर्मेनियम और एंटीमनी के साथ किया।
अब चीन ग्लोबल प्राइस बढ़ाकर पश्चिमी देशों (खासकर US) की सप्लाई चेन को प्रभावित करना चाहता है, क्योंकि US ने सिल्वर को क्रिटिकल मिनरल लिस्ट में डाला है।
यह अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर में काउंटर मूव है – US टैरिफ्स और टेक रेस्ट्रिक्शंस के जवाब में रिसोर्स कंट्रोल से प्रेशर बनाना। यह कोई नई रणनीति नहीं है; चीन क्रिटिकल मिनरल्स को इकोनॉमिक स्टेटक्राफ्ट का टूल बनाता रहा है। चीन ने कई क्रिटिकल मिनरल्स पर एक्सपोर्ट कंट्रोल्स लगाए हैं जैसे
- एंटीमनी (Antimony) – फ्लेम रिटार्डेंट्स, बैटरी।
- टेल्यूरियम (Tellurium), बिस्मथ (Bismuth), मोलिब्डेनम (Molybdenum), इंडियम (Indium)।
चीन पहले से ही गैलियम, जर्मेनियम, ग्रेफाइट, कुछ रेयर अर्थ एलिमेंट्स का एक्सपोर्ट कंट्रोल करता रहा है। ये सभी डिफेंस, सेमीकंडक्टर, ग्रीन एनर्जी में जरूरी हैं, और चीन इनकी ग्लोबल प्रोडक्शन/रिफाइनिंग में डॉमिनेंट है।
कुल मिलाकर, ये कदम चीन की रिसोर्स नेशनलिज्म और स्ट्रैटेजिक इंडिपेंडेंस की पॉलिसी का हिस्सा हैं, जो ग्लोबल मार्केट्स में सप्लाई शॉर्टेज और प्राइस वोलेटिलिटी बढ़ा सकते हैं।
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