छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में क्रिसमस से एक दिन पूर्व 24 दिसंबर को जिस तरह से सत्तारूढ़ भाजपा से जुड़े हिंदू संगठनों से जुड़े लोगों ने तोड़फोड़ की वह बीते कुछ सालों से हिंदुओं के हितों की आड़ में देश के ईसाइयों और मुस्लिमों के प्रति पैदा की जा रही नफरत का ही नतीजा है।
बात सिर्फ रायपुर की भी नहीं है, देश के अनेक शहरों में जिस तरह से हिंदूवादी संगठनों ने ईसाई समुदाय और उनके प्रतीकों को निशाना बनाया है, वह संस्थागत तरीके से किए जा रहे हमले की परिणति है, जिसमें भविष्य के अंदेशों को पढ़ा जा सकता है।
ये हमले तब भी जारी रहे, जब 25 दिसंबर को यानी आज क्रिसमस के मौके पर खुद प्रधानमंत्री ने राजधानी दिल्ली में एक चर्च में जाकर प्रार्थना की और देशवासियों को शुभकामनाएं दीं। यही नहीं, बकायदा उन्होंने अपने एक्स हैंडल से इस मौके की अनेक तस्वीरें भी साझा कीं और शांति और सद्भाव का संदेश भी दिया।
फिर भी, पूरे देश में ईसाई समुदाय पर जिस तरह के हमले हुए हैं, पूछा जा सकता है कि प्रधानमंत्री की प्रार्थना पर नफरत कैसे भारी पड़ रही है?
यह सचमुच पीड़ादायक है कि क्रिसमस से ठीक एक दिन पहले ही कैथोलिक बिशप कांफ्रेंस ऑफ इंडिया (सीबीसीआई) के अध्यक्ष आर्कबिशप एंड्र्यू ताझथ ने बकायदा वीडियो जारी कर प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री शाह और राज्यों के मुख्यमंत्रियों से ईसाई समुदाय के लोगों की सुरक्षा और कानून व्यवस्था सुनिश्चित करने की अपील की थी।
हैरान करने वाली बात यह है कि इन हमलों में पुलिस की भूमिका मूकदर्शक जैसी नजर आती है। जाहिर है, ये हमले सिर्फ कानून व्यवस्था का मामला नहीं हैं, बल्कि यह संविधान को सीधे चुनौती है, जिसमें देश के हर नागरिक को अपनी आस्था और धर्म चुनने का अधिकार दिया गया है।
दरअसल इन हमलों को समग्रता में देखने की जरूरत है। ऐसे समय जब खुद को गैर राजनीतिक संगठन बताने वाले और किसी भी तरह की गैरजवाबदेही वाले संगठन आरएसएस से जुड़े लोग खुलेआम हिंदू राष्ट्र की बात करें और संवैधानिक संस्थाओं को चुनौती दें, तो उसका संदेश दूर तक जाता है।
बेशक, जबरिया धर्मांतरण की कोई जगह नहीं होनी चाहिए और यह बात हम यहां बार-बार दोहराते हैं। लेकिन सवाल यह है कि बजरंग दल या विहिप के लोगों को यह अधिकार किसने दे दिया कि वे कथित धर्मांतरण के आरोप में किसी दिवंगत आदिवासी के शव को कब्र से निकालने को मजबूर करें?
भारत में पिछली जनगणना को ही आंकड़ें मान लें तो देश में ईसाइयों की आबादी 2.3 फीसदी के आसपास है। इसी तरह से मुस्लिम आबादी 14 फीसदी से कुछ ज्यादा। देश में हिंदुओं की आबादी 80 करोड़ के करीब है और इसमें पिछले कई सदियों में कोई मूलभूत अंतर नहीं आया है।
वास्तव में ईसाइयों और मुस्लिमों पर हमले करने वाले लोग हिंदुओं के भी शुभचिंतक नहीं हैं। अल्पसंख्यकों के प्रति बढ़ती असहिष्णुता का ही नतीजा है कि देश में धार्मिक उदारता के मामले में दुनिया में पिछड़ रहा है।
भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए ये हमले काला धब्बा हैं। क्या इस बात का अंदाजा है कि इससे विदेशों में भारत की कैसी छवि बन रही होगी? युनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के मुताबिक इस साल 2025 में भारत में ईसाइयों के खिलाफ हिंसा के 700 मामले दर्ज किए गए हैं।
क्रिसमस के दिन देश के विभिन्न हिस्सों में हुई हिंसा हमारे लिए सामूहिक शर्म का कारण होना चाहिए।
इस शांति और सद्भाव के दिन ईश्वर से सिर्फ प्रार्थना ही की जा सकती है कि… हे ईश्वर उन्हें माफ करना, वे नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं…

