एक दूजे की हुई शिवसेना (यूबीटी) और मनसे

NFA@0298
3 Min Read


महाराष्ट्र की सियासत में एक बार फिर ठाकरे परिवार का नाम गूंज रहा है। दो दशकों के अलगाव के बाद, उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) और राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के बीच गठबंधन के रिश्‍ते बने हैं। इसे बाल ठाकरे की विरासत को फिर से एकजुट करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है, लेकिन दूसरा नजरिया राजनीतिक मजबूरी का भी है।

यह गठबंधन ऐसे समय में बन रहा है जब हाल ही के नगर परिषद और पंचायत चुनावों में महाविकास आघाड़ी (एमवीए) की हार के बाद, भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर चुकी है। हालांकि ठाकरे बंधुओं के हाथ मिलाने का फैसला कुछ महीने पहले तब ही हो गया था, जब हिंदी को स्कूलों में अनिवार्य करने के विरोध में दोनों ने साथ रैली की थी।

शिवसेना के लिए बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) का महत्व सिर्फ एक नगर निकाय से कहीं अधिक है। बीएमसी मुंबई की राजनीतिक और आर्थिक धुरी है, जो शिवसेना की स्थापना से ही उसकी ताकत का प्रतीक रही है।

1966 में बाल ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना ने मराठी अस्मिता और स्थानीय रोजगार की लड़ाई से अपनी जड़ें जमाईं और बीएमसी पर कब्जा करके मुंबई को अपना गढ़ बनाया। पिछले तीन दशकों में शिवसेना ने ज्यादातर समय बीएमसी पर शासन किया, जो न केवल राजनीतिक प्रभाव देता है बल्कि विकास परियोजनाओं और ठेकों के माध्यम से पार्टी की आर्थिक मजबूती भी सुनिश्चित करता है। 2025-26 के लिए बीएमसी का बजट 74,427 करोड़ रुपये है, जो कई राज्यों के बजट से बड़ा है।

शिवसेना के लिए बीएमसी खोना मतलब मुंबई में अपनी साख गंवाना है, खासकर जब शिंदे गुट ने भाजपा के साथ मिलकर राज्य स्तर पर मजबूती हासिल की है। एकनाथ शिंदे के 2022 के विद्रोह ने उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका दिया। शिंदे ने 40 से अधिक विधायकों के साथ अलग होकर भाजपा से गठबंधन किया, जिससे उद्धव ने मुख्यमंत्री पद गंवाया और पार्टी का मूल चिह्न भी खो दिया।

अब ठाकरे बंधुओं का गठबंधन इसी नुकसान की भरपाई के रूप में देखा जा रहा है। अगर यह गठबंधन कामयाब रहा, तो भाजपा की एकछत्र सत्ता को चुनौती मिलेगी, वरना यह सिर्फ एक असफल प्रयोग साबित हो सकता है।

ठाकरे बंधुओं का साथ आना महाराष्ट्र की सियासत के लिए इसलिए भी अहम है क्योंकि यह बाल ठाकरे की हिंदुत्व और मराठी मानुष की विचारधारा को फिर से एकीकृत करने का प्रयास है। 2005 में राज ठाकरे ने एमएनएस बनाकर अलग रास्ता चुना था, जिससे शिवसेना की ताकत बंट गई। अब जब उद्धव की पार्टी हाल के चुनावों में कमजोर पड़ी है, तब इस गठबंधन एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है।



Source link

Share This Article
Leave a Comment