रायपुर। जाने-माने कवि-कथाकार विनोद कुमार शुक्ल का आज छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर स्थित एम्स में निधन हो गया। 88 वर्षीय शुक्ल बीते कुछ महीने से बीमार थे और उन्हें इसी महीने दो दिसंबर को एम्स में भरती करवाया गया था। आने वाली पहली जनवरी को वह 89 वर्ष के हो जाते। उनके निधन से हिंदी जगत में शोक की लहर फैल गई है।
लगभग सात दशक की अपनी लेखकीय यात्रा में विनोद कुमार शुक्ल निरंतर लिखते रहे। अस्वस्थ होने के बाद भी उनका लेखन जारी रहा। उनके स्वास्थ्य की देखभाल कर रहे उनके पुत्र शाश्वस्त ने द लेंस को बताया था कि रायपुर एम्स में भरती होने के कुछ दिनों बाद 6 दिसंबर को जब डॉक्टर ने उनसे पूछा था कि वह क्या चाहते हैं, तो उन्होंने इशारे से बताया था कि लिखना। और फिर जब उन्हें कागज और कलम पकड़ाई गई तो विनोद कुमार शुक्ल ने ये पंक्तियां लिखी थीं, बत्ती मैंने पहले बुझाई/ फिर तुमने बुझाई/ फिर दोनों ने मिल कर बुझाई!

विनोद कुमार शुक्ल जी के परिवार में उनकी पत्नी सुधा, एक पुत्र,एक पुत्री तथा उनके परिवार हैं।
विनोद कुमार शुक्ल को हाल ही में भारत का सर्वोच्च साहित्यिक सम्मान ज्ञानपीठ से सम्मानित किया गया था। एक जनवरी, 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में पैदा हुए विनोद कुमार शुक्ल रायपुर स्थित इंदिरा कृषि विश्वविद्यालय से 90 के दशक के मध्य में सेवानिवृत्त हुए थे, जहां वह प्राध्यापक थे। 1960 के दशक में जबलपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाई करते समय वह राजनांदगांव में पहली बार महाकवि गजानन माधव मुक्तिबोध के संपर्क में आए थे। मुक्तिबोध 1958 में राजनांदगांव में नए स्थापित हुए दिग्विजय महाविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक बन कर आए थे।

यह मुक्तिबोध ही थे, जिन्होंने सबसे पहले विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं की पहचान की थी। विनोद कुमार शुक्ल के 1971 में आए पहले कविता संग्रह लगभग जयहिंद ने हिंदी साहित्य जगत में उन्हें खास पहचान दी। इसके एक दशक बाद आए उनके कविता संग्रह ने अपने शीर्षक, वह आदमी चला गया गरम कोट पहिनकर, की वजह से खासा ध्यान खींचा।
1979 में उनका पहला उपन्यास नौकर की कमीज आया, जिसके जरिये उन्होंने कथा संसार में भी अपनी जगह सुनिश्चित कर ली। 1990 के दशक के मध्य में जाने माने फिल्मकार मणिकौल ने नौकर की कमीज पर फिल्म भी बनाई, जिसे कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित भी किया गया।
सहज शब्द विन्यास की उनकी कविताएं उनके मानवीय सरोकारों को अभिव्यक्त करती हैं। दूसरी ओर उनके तीनों उपन्यास, नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे और दीवार में एक खिड़की रहती थी, मध्य वर्गीय जीवन की छोटी छोटी दुश्वारियों और खुशियों का तानाबाना बनकर सामने आते हैं।
उनके उपन्यास जहां जादुई यथार्थ के साथ पाठक के समक्ष उपस्थित होते हैं, वहीं उनकी कविताएं पाठक की संवेदना तक सीधे पहुंचती हैं। उनके प्रमुख कविता संग्रहों में सब कुछ होना बचा रहेगा, अतिरिक्त नहीं, कविता से लंबी कविता और आकाश धरती को खटकता है, शामिल हैं। इसके अलावा विनोद जी ने कहानियां भी लिखी हैं और पिछले कुछ वर्षों से वह बच्चों के लिए भी खासा लेखन कर रहे थे।
विनोद जी की कविताओं और उपन्यासों को अंग्रेजी सहित कई देशी-विदेशी भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। महानगरीय चकाचौंध से दूर विनोद कुमार शुक्ल की हिंदी के व्यापक संसार में व्यक्तिगत रूप से सार्वजनिक उपस्थिति कम ही रही है। विनोद जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने के बाद अशोक वाजपेयी ने अपने साप्ताहिक कॉलम कभी कभार में उनके बारे में लिखा था, बड़बोले, बेसुरे नायकों से आक्रांत समय में अनायकता के गाथाकार।

छत्तीसगढ़ और यहां के आदिवासियों को लेकर उनमें गहरी संवेदना रही है, मसलन इन पंक्तियों को ही देखें, ‘एक आदिवासी/कहीं भी आदिवासी नहीं/चलते-चलते/राह के एक पेड़ के नीचे खड़ा हुआ नहीं/दूर चलते-चलते/दूसरे पेड़ के नीचे, थककर भी बैठा नहीं,/जंगल से बाहर हुआ आदिवासी/एक पेड़ के लिए भी आदिवासी नहीं।’
1997 में विनोद कुमार शुक्ल को उनके उपन्यास दीवार में एक खिड़की रहती थी, के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। इसके अलावा उन्हें देश विदेश के अनेक प्रमुख पुरस्कार, सम्मान, और फैलोशिप से नवाजा जा चुका है। इनमें ज्ञानपीठ के अलावा गजानन माधव मुक्तिबोध फैलोशिप, रजा पुरस्कार, शिखर सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता और 2023 का प्रतिष्ठित पैन-नाबोकोव पुरस्कार शामिल है।

