रायपुर। बीमा क्षेत्र में FDI को 100 फीसदी केंद्र सरकार की मंजूरी मिलने के बाद आज वित्तीय क्षेत्र की विभिन्न कर्मचारी-अधिकारी यूनियनों की संयुक्त मंच ने जोरदार प्रदर्शन किया।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में मुख्य धरना एलआईसी के पंडरी स्थित डिविजनल ऑफिस के सामने आयोजित हुआ। शाम के समय सैकड़ों की संख्या में जुटे कर्मचारियों और अधिकारियों ने मानव श्रृंखला बनाकर अपना विरोध दर्ज किया और इस प्रस्ताव को वापस लिए जाने तक संघर्ष जारी रखने की शपथ ली।
इस विरोध प्रदर्शन का संयुक्त आह्वान ऑल इंडिया बैंक एम्प्लॉईज एसोसिएशन (एआईबीईए), ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कॉन्फेडरेशन (एआईबीओसी), नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ बैंक एम्प्लॉईज (एनसीबीई), फेडरेशन ऑफ एलआईसी क्लास-1 ऑफिसर्स एसोसिएशन, ऑल इंडिया इंश्योरेंस एम्प्लॉईज एसोसिएशन (एआईआईईए), जनरल इंश्योरेंस एम्प्लॉईज ऑल इंडिया एसोसिएशन (जीआईईएआईए), ऑल इंडिया एलआईसी एम्प्लॉईज फेडरेशन (एआईएलआईसीईएफ), ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स एसोसिएशन (एआईबीओए) और बैंक एम्प्लॉईज फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीईएफआई) ने मिलकर किया था।
सभा को संबोधित करते हुए बैंक ऑफिसर्स संघ के नेता वाय. गोपाल राव, बैंक कर्मचारी संघ के शिरीष नलगुंडवार, राज्य कर्मचारी संघ के चंद्रशेखर तिवारी, प्राइवेट स्कूल शिक्षक संघ (सीटू) के राजेश अवस्थी तथा सेंट्रल जोन इंश्योरेंस एम्प्लॉईज एसोसिएशन के महासचिव धर्मराज महापात्र ने कहा कि सरकार ने एक बार फिर जनता को गुमराह करने की कोशिश की है।
उन्होंने कहा कि लोकसभा में पेश किए गए “सबका बीमा–सबकी रक्षा (बीमा कानून संशोधन) विधेयक 2025” को आकर्षक नाम दिया गया है और इसके उद्देश्य को बीमा क्षेत्र की तेज विकास, पॉलिसीधारकों की बेहतर सुरक्षा, कारोबार में आसानी और नियामकीय पारदर्शिता बताया जा रहा है। लेकिन असल मकसद कुछ और है, यह देश की कीमती घरेलू बचत को विदेशी पूंजी के नियंत्रण में सौंपने की साजिश है।
कर्मचारी नेताओं ने तर्क दिया कि विधेयक में भारतीय बीमा कंपनियों में पोर्टफोलियो निवेशकों सहित 100 प्रतिशत एफडीआई की छूट देने का प्रावधान है। दावा किया जा रहा है कि इससे पूंजी, नई तकनीक और वैश्विक बेहतरीन प्रथाएं आएंगी, लेकिन हकीकत में इससे न तो अर्थव्यवस्था को फायदा होगा और न ही बीमाधारकों को। सिर्फ विदेशी कंपनियों को भारतीय बचत पर ज्यादा कब्जा मिलेगा। किसी भी देश के विकास में घरेलू बचत की भूमिका सबसे अहम होती है और एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते भारत को इस पर अपना नियंत्रण बनाए रखना जरूरी है।
उन्होंने याद दिलाया कि ज्यादातर बड़ी विदेशी बीमा कंपनियां पहले से ही भारतीय साझेदारों के साथ यहां काम कर रही हैं। मौजूदा 74 प्रतिशत एफडीआई सीमा निजी क्षेत्र के विस्तार में कोई रुकावट नहीं है। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने दिसंबर 2024 में संसद को बताया था कि मार्च 2024 तक बीमा क्षेत्र में विदेशी निवेश महज 32.67 प्रतिशत ही था। कई बड़ी कंपनियों जैसे मैक्स लाइफ, कोटक महिंद्रा, भारती एक्सा आदि में विदेशी हिस्सेदारी शून्य है।
100 प्रतिशत एफडीआई से बाजार में अराजकता आएगी। विदेशी साझेदार अकेले कारोबार शुरू करेंगे तो देसी कंपनियां बुरी तरह प्रभावित होंगी। अब तक नौ विदेशी बीमाकर्ता भारत छोड़ चुके हैं, जिससे लाखों पॉलिसीधारक परेशान हुए। विदेशी पूंजी सिर्फ मुनाफे के लिए आती है, इसलिए वह अमीर ग्राहकों और लाभकारी सेगमेंट पर फोकस करेगी। इससे गरीब और मध्यम वर्ग की बीमा जरूरतें नजरअंदाज हो जाएंगी।
नेताओं ने कहा कि मौजूदा आर्थिक अनिश्चितता में घरेलू बचत पर विदेशी कब्जा बढ़ाना खतरनाक होगा। बीमा पैठ बढ़ाने का दावा भी खोखला है, क्योंकि यह लोगों की आय और संपत्ति पर निर्भर करती है, न कि एफडीआई पर। फिर भी एलआईसी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने मुश्किल हालात में बेहतर प्रदर्शन किया है। सरकार को इन्हें मजबूत करना चाहिए, कमजोर नहीं।
एलआईसी अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन से सार्वजनिक क्षेत्र की इस संस्था को निजी कंपनियों के बराबर लाकर उसके सामाजिक दायित्व और कर्मचारियों की नौकरी सुरक्षा को खतरे में डालने की आशंका जताई गई। रायपुर डिवीजन इंश्योरेंस एम्प्लॉईज यूनियन के महासचिव सुरेंद्र शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ सभा का समापन किया।

