पुलिस को सबक सिखाने को 55 दिन तक छकाता रहा बीजेपी नेता!

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लखनऊ। हमीरपुर के पूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष और सांसद का चुनाव लड़ चुके प्रीतम सिंह 55 दिन बाद मिल गए हैं। वह लखनऊ के दुबग्गा इलाके में एक घर में छिपे थे। शुक्रवार देर रात पुलिस इनपुट के आधार पर वहां पहुंची और भाजपा नेता को बरामद किया। कहा जा रहा कि प्रीतम सिंह पुलिस को सबक सिखाने के लिए अंडरग्राउंड हुए थे। 18 अक्टूबर को प्रीतम के पेट्रोल पंप पर झगड़ा हुआ था। इसके बाद पुलिस उन्हें थाने ले गई थी। उनके घर नहीं लौटने पर परिवार ने आरोप लगाया कि प्रीतम को पुलिस ने उठाया और वह घर नहीं आए। इसके बाद पुलिस ने छापेमारी की, लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला।

Dubagga

लखनऊ पुलिस ने दुबग्गा से किया बरामद

इधर, परिवार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गया। कोर्ट ने पुलिस को जमकर फटकार लगाई। कहा, लगता है आपने प्रीतम सिंह का मर्डर कर दिया। कोर्ट ने 8 दिसंबर को एसपी को पेश होने का आदेश दिया। 8 दिसंबर को एसपी डॉ. दीक्षा शर्मा खुद कोर्ट में पेश हुईं। कोर्ट ने पुलिस की दलीलें सुनने के बाद एक सप्ताह का समय दिया। इसके बाद जिले की कई पुलिस टीमें लगातार लखनऊ और संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थीं। उनकी तलाश शुक्रवार खत्म हुई। 

जानकारी के मुताबिक़ तीन बार लोकसभा और एक बार विधायकी का चुनाव लड़ा हमीरपुर जिला मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर राठ कस्बा है। यहां की सियासत में प्रीतम सिंह किसान जाना-पहचाना नाम है। लोधी बिरादरी में प्रीतम बुंदेलखंड के बड़े नेता माने जाते हैं। उन्होंने बीजेपी से अपनी राजनीति की शुरुआत की। 2007 में राठ विधानसभा से पहली बार चुनाव लड़ा, लेकिन 15 हजार वोट से हार गए। 2009 में बीजेपी के टिकट पर लोकसभा लड़ा, लेकिन फिर हार गए। साल 2014 में जब बीजेपी की लहर चली, तब प्रीतम सिंह पार्टी छोड़कर कांग्रेस में चले गए। 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। 2022 में वह फिर से बीजेपी में आ गए। इसके बाद से पार्टी में ही बने रहे। 

राठ में हमीरपुर रोड पर प्रीतम सिंह का पेट्रोल पंप है। इसी के बगल ही उनका घर भी है। 18 अक्टूबर को धनतेरस था। रात करीब 12 बजे महोबा जिले का नरेश अहिरवार अपने 4 साथियों के साथ पेट्रोल पंप पर पहुंचा। यहां इन लोगों ने कार में 3400 रुपए का पेट्रोल भरवाया। नरेश के साथी रविकुमार ने पेमेंट के लिए पेट्रोल पंप पर लगा क्यूआर कोड स्कैन किया। इंटरनेट नहीं होने के चलते पेमेंट नहीं हुआ। इसी बीच झगड़ा हो गया। देखते-देखते मारपीट शुरू हो गई। नरेश की तरफ से उसके अलावा रविकुमार, मनोज, वीरेंद्र और अजय थे। दूसरी तरफ पेट्रोल पंप पर तुरंत ही तमाम कर्मचारी आ गए। पेट्रोल पंप पर झगड़े की सूचना प्रीतम सिंह को हुई, तो वह भी पहुंच गए। मारपीट बढ़ती देख प्रीतम ने हवाई फायर कर दिया। पता चलते ही इंस्पेक्टर अमित सिंह राठ थाने और कोतवाली पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंचे। एम्बुलेंस भी बुलाई गई।

नरेश की तरफ से 3 लोग घायल थे, जिन्हें एम्बुलेंस से सीएचसी ले जाया गया। वहां इलाज के बाद सभी को राठ थाने ले जाया गया। पुलिस ने मौके से सीसीटीवी का डीवीआर, प्रीतम सिंह की लाइसेंसी राइफल, जिससे फायर किया गया और रिवॉल्वर को कब्जे में लिया। प्रीतम सिंह को भी राठ थाने ले गई। थाने के अंदर रातभर गहमागहमी चलती रही। झगड़ा खत्म करने की कोशिश हुई। सुबह दोनों पक्षों के बीच आपसी सुलह-समझौता हो पाया।

प्रीतम सिंह के बेटे राघवेंद्र सिंह भी थाने गए थे। पुलिस के मुताबिक, सुपुर्दगी के लिए राघवेंद्र से कागज पर सिग्नेचर करवाया। इसके बाद प्रीतम सिंह बेटे के साथ थाने से निकल गए। बस इसी के बाद से कहानी में नया मोड़ आया। परिवार ने आरोप लगाया कि भाजपा नेता थाने से घर ही नहीं लौटे। प्रीतम का परिवार 27 अक्टूबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गया। 28 अक्टूबर को पहली सुनवाई हुई। कोर्ट ने हमीरपुर पुलिस को आदेश दिया कि किसी भी हालत में प्रीतम सिंह को 2 अक्टूबर तक कोर्ट में हाजिर करिए। पुलिस पर प्रेशर बढ़ा, तो जगह-जगह छापेमारी शुरू हुई। प्रीतम की तलाश में जुटी पुलिस 31 अक्टूबर को उनके ही घर पर उन्हें खोजने पहुंच गई। प्रीतम के कमरे में ताला लगा था। पुलिस ने मजिस्ट्रेट के सामने उस ताले को कटवाया। 

हालांकि, कमरे में प्रीतम सिंह नहीं मिले। इसके बाद 13, 14 और 15 नवंबर को कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई। हमीरपुर पुलिस को फटकार लगी। प्रीतम सिंह के परिवार की ओर से कोर्ट में पक्ष रख रहे वकील आलोक दुबे कहते हैं, ‘जज साहब ने तो पुलिस की जांच पर सवाल खड़ा किया। यहां तक टिप्पणी कर दी कि कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस ने मर्डर कर दिया!’ 27 नवंबर को फिर से इस मामले पर सुनवाई हुई। 

प्रीतम सिंह को नहीं खोज पाने पर कोर्ट ने फिर से पुलिस की जांच पर सवाल उठाए। कोर्ट ने आदेश दिया कि 8 दिसंबर को जब इस मामले की अगली सुनवाई होगी, तब कोर्ट में जिले की एसपी डॉ. दीक्षा शर्मा व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश हों और अपनी बात रखें। 8 दिसंबर को एसपी डॉ. दीक्षा शर्मा खुद कोर्ट में पेश हुईं। कोर्ट ने पुलिस की दलीलें सुनने के बाद एक सप्ताह का समय दिया।



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