” शिक्षण विभाग में प्रोफेसर ही सर्वोपरि – डॉ. चितरंजन कर”
राजिम,,अंचल के प्रख्यात शासकीय राजीव लोचन स्नातकोत्तर महाविद्यालय राजिम में पीएम उषा द्वारा प्रायोजित 10 नवंबर से 17 नवंबर तक संस्था प्रमुख डॉ सविता मिश्रा के मार्गदर्शन में संचालित फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का समापन हुआ।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ चितरंजन कर, पूर्व विभागाध्यक्ष साहित्य एवं भाषा विज्ञान अध्ययन शाला, पंडित रविशंकर विश्व विद्यालय रायपुर थे। उन्होंने अपने उद्बोधन में सर्वप्रथम राजिम से जुड़ी हुई स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि राजिम स्थित यह महाविद्यालय पहले रानी धर्मशाला में प्राइवेट रूप से संचालित थी। जो 1968 में छत्तीसगढ़ के बहुत से आवेदित महाविद्यालयो में प्रथम महाविद्यालय है, जो शासकीय घोषित हुआ। मुझे गर्व है कि मैं इसका हिस्सा रहा। मुझे खुशी है कि आज यहां अधोसरंचना का विकास होने के साथ काफी कुछ बदला है। आज इस सात दिवसीय कार्यक्रम फैकेल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का वे हिस्सा बने। उन्होंने कैपेसिटी बिल्डिंग एवं एन्हांसमेंट इन हाइयर एजुकेशन आधारित प्रोग्राम की सराहना करते हुए कहा शिक्षण विभाग में प्रोफ़ेसर सबसे बड़ा होता है। कोई उपाधि ज्ञान नहीं होता है। सूचना एवं ज्ञान में अंतर होता है। सूचना बाहर से आती है परन्तु ज्ञान आत्मसात होता है। शिक्षकों को कभी भी सीखना बंद नहीं करना चाहिए। शिष्य एवं अनुशासन एक ही सिक्के के दो पहलू होते है। इन्होंने बताया कि सभी शिक्षकों को भाषा का ज्ञान होना अति आवश्यक है। जिनका भाषा ज्ञान न हो उनका शिक्षा ज्ञान पूर्ण नहीं होता है। इन्होंने बताया कि शिक्षण रोचक होना चाहिए। इसके लिए अनुभव को शिक्षण के साथ जोड़ना जरूरी है तथा शिक्षक पूरी तरह से तल्लीन होकर पढ़ाना जरूरी है। इन्होंने बताया कि अनुसंधान के लिए बड़ी प्रयोगशालाएं नहीं चाहिए, केवल अवलोकन करने की आवश्यकता होती है। सभी को अपनी प्रतिभा बढ़ाने हेतु कार्य करना चाहिए। पढ़ाने से तात्पर्य विद्यार्थियों को पढ़ने योग्य बनाना होता है। इसके लिए बच्चों को प्रेरित करना अति आवश्यक है। इन्होंने बताया कि शिक्षण एक पेशा नहीं बल्कि अध्यवसाय है। कक्षा में जाने से पहले शिक्षक को क्या पढ़ाना है उसे स्वयं पढ़ कर जाना चाहिए। हमेशा सीखते रहने की लालसा होना चाहिए तथा शिक्षण ऐसा हो जिसमें विद्यार्थी शिक्षक का इंतजार करे कि आज क्या सीखने मिले। इसलिए अपनी क्षमता को हमेशा बढ़ते रहना अति आवश्यक है।
विशेष अतिथि के आसंदी में उपस्थित डॉ. उर्मिला शुक्ला ने इस कार्यक्रम में अपना अनुभव साझा किया। विशेष अतिथि श्रीमती माधुरी कर ने बताया कि सभी शिक्षकों के पास यह गुण होना चाहिए कि वे विद्यार्थियों के गुण एवं कौशल को समझ सके। कविता के माध्यम से इन्होंने वर्तमान एवं प्राचीन चित्रण का सुंदर प्रस्तुतिकरण दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे संस्था प्रमुख डॉ. सविता मिश्रा ने कहा किसी भी कार्यक्रम के सफल होने के लिए विद्यार्थियों की सहभागिता अति आवश्यक होती है। नई शिक्षा नीति के सफलता पूर्वक संचालन के लिए शिक्षकों को विद्यार्थियों का कौशल विकास करने की आवश्यकता है जिसके लिए उन्हें खुद का कौशल विकास करने की जरूरत है। पाठ्यक्रम के अनुरूप सभी विद्यार्थियों के कौशल विकास के लिए शिक्षकों का विकसित होना आवश्यक है जो ऐसे कार्यक्रमों के सहारे ही हो सकता है।
उन्होंने बताया कि शिक्षकों को अनुसंधान के क्षेत्र में भी कार्य करना चाहिए ताकि वे विद्यार्थियों को असाइनमेंट के रूप में शोध को समझा सके। इन्होंने बताया कि शिक्षण की पुरानी पद्धति के साथ साथ नई पद्धतियों को भी अपनाना चाहिए। इन्होंने स्वयं एवं मूक जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के बारे में भी बताया। शिक्षकों को हर दृष्टिकोण में पढ़ाने के काबिल रहना चाहिए। अर्पित प्लेटफॉर्म के बारे में बताया गया जो शिक्षण के लिए श्रेष्ठ है।
उन्होंने कार्यक्रम के सफल संचालन हेतु कार्यक्रम के संयोजक डॉ. भानु प्रताप नायक व कार्यकारिणी समिति के सदस्य डॉ. राजेश कुमार बघेल, आकाश बाघमारे, मनीषा भोई, मुकेश कुर्रे, तामेश्वर मार्कण्डेय एवं तकनीकी सदस्यों मनीष कुमार साहू, टेमन साहू, वासुदेव धीवर को शुभकामनाएं दी।
कार्यक्रम के संचालक डॉ. भानुप्रताप नायक के द्वारा विगत सात दिवस के कार्यक्रम की रूपरेखा को बताया गया एवं सभी कार्यकारिणी सदस्यों को आभार प्रदर्शित किया गया।
कार्यक्रम के पहले सात दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिवस के प्रथम सत्र के प्रवक्ता डॉ. उर्मिला शुक्ला, भूतपूर्व प्राध्यापक (हिंदी), छत्तीसगढ़ महाविद्यालय,रायपुर रही। इन्होंने “शोध लेखन की प्रक्रिया एवं प्रकाशन” विषय में अपना व्याख्यान दिया। इन्होंने बताया वर्तमान समय में विद्यार्थियों को शिक्षा देना शिक्षक के लिए चुनौती है। शिक्षकों को विद्यार्थियों से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है और समय-समय पर अपने सूझबूझ का विकास करने की आवश्यकता है।
उन्होंने बताया कि मनुष्य जब से सोचना शुरू किया इस समय से शोध प्रकाश में आया भले ही लिखित रूप में बाद में आया हो। इन्होंने अपने शोध की रूपरेखा, चयन प्रवृत्ति, उपकल्पना, उद्देश्य, महत्व किस प्रकार करना है इसके बारे में विस्तार में बताया। इन्होंने बताया कि तथ्यों के आधार पर जब हम निष्कर्ष देते हैं वास्तव में यही शोध होता है। विषय का चयन बहुत सावधानी पूर्वक करना चाहिए। शोध का अर्थ ही खोज करना है। मंच संचालन श्री मुकेश कुर्रे एवं आभार प्रदर्शन श्री तामेश्वर मार्कण्डेय ने किया।
यह सात दिवसीय कार्यक्रम महाविद्यालय परिवार के अथक परिश्रम तथा उत्साहित प्रयास से सफल हो सका। इस हेतु आयोजक मंडल जिसमें वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक डॉ. के. आर. मत।वले, एम.एल. वर्मा, डॉ. समीक्षा चंद्राकर,क्षमा शिल्पा मसीह, चित्रा खोटे, डॉ राजेश बघेल, मनीषा भोई, मुकेश कुर्रे, डॉ. देवेंद्र देवांगन, योगेश तारक, डॉ अश्वनी साहू, डॉ ग्रीष्मा सिंह, डॉ. सर्वेश कौशिक पटेल, निधि बग्गा, डाहरू सोनकर, खोमन साहू, हेमचंद साहू, प्रदीप टंडन, तोपचंद बंजारे, वाणी चंद्राकर नेहा सोनी, तृप्ति साहू, सोनम चंद्राकर, सुमन साहू, मनीष साहू, टेमन साहू, गरिमा साहू, वासुदेव धीवर, शुभम शर्मा, खुबलाल साहू, तरुण साहू थे।

