रायगढ़ में प्रधान आरक्षक की हत्याः वैचारिक दुराग्रह का घृणा में बदल जाना

NFA@0298
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छत्तीसगढ़ के रायगढ़ के रेलवे स्टेशन से जुड़ी रेलवे पुलिस चौकी में कथित तौर पर तीखे वैचारिक विवाद के बीच एक प्रधान आरक्षक के अपने साथी प्रधान आरक्षक की गोली मारकर हत्या कर देने की घटना भयावह होने के साथ ही समाज में फैल चुकी घृणा की तस्दीक कर रही है, जहां असहमतियों के कारण किसी की जान भी जा सकती है।

घटना के ब्योरे और रेलवे पुलिस के अधिकारियों के जो बयान सामने आए हैं, उनके मुताबिक बुधवार तड़के चार बजे के आसपास आरपीएफ की चौकी पर दो प्रधान आरक्षक पी के मिश्रा और कुमार सिंह लदेर के बीच राजनीतिक चर्चा तीखी तकरार में बदल गई और लदेर ने मिश्रा पर रिवाल्वर से चार गोलियां दाग दीं। बताया जाता है कि वे लोग संविधान, आरक्षण और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर को लेकर चर्चा कर रहे थे!

हत्या की असली वजह तो निष्पक्ष जांच से ही सामने आएगी। लेकिन बताया जाता है कि लदेर और मिश्रा में अच्छी मित्रता थी, लेकिन पिछले कुछ समय से उनमें वैचारिक मतभेद थे और उनमें विवाद चल रहा था।

देश ने हाल ही में संविधान की स्थापना का 75 वां वर्ष मनाया है और उसकी हिफाजत में लगे लोगों के लिए यह घटना एक सवालिया निशान की तरह है। उनकी नीयत और वैचारिक संकीर्णता दोनों पर।

इस तरह की यह कोई पहली घटना नहीं है, जहां वैचारिक दुराग्रह ने जानलेवा झगड़े का रूप ले लिया। यदि हम अपने आसपास देखें, तो असहमतियों और स्वस्थ बहस की जगहें लगातार सिमटती जा रही हैं।

खबरिया टीवी चैनलों में रोजाना जिस तरह वैचारिक टकराव के मुद्दे पर हिंसक बहसें हो रही हैं, सोशल मीडिया को जिस तरह से वैमनस्य का अखाड़ा बना दिया गया है, उसमें बहसों का झगड़े में बदल जाना आम हो चुका है।

यह एक उदार लोकतांत्रिक समाज के कट्टर होते जाने का नतीजा है, जहां वैचारिक दुराग्रह की प्रयोगशाला में रोजाना घृणा के नए नए आविष्कार ईजाद किए जा रहे हैं। अफसोस कि यह मामला संविधान पर चर्चा से जुड़ा था। डॉ. आंबेडकर ने ऐसी स्थिति की कल्पना तो नहीं ही की होगी।

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