राजपूतों के बोलबाले वाली यूपी भाजपा में ब्राह्मणों और कुर्मियों के सहभोज के पीछे क्या है?

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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में विगत 23 दिसंबर को अलग-अलग पार्टियों के ब्राह्मण विधायकों की बैठक को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई हैं। राजपूत और ब्राह्मण विधायकों के बाद अब कुर्मी विधायकों की आगामी 5 जनवरी को बैठक होनी थी। लेकिन, भाजपा (UP BJP) प्रदेश अध्यक्ष पंकज चौधरी के हस्तक्षेप के बाद उक्त बैठक की संभावना धूमिल हो गई है।

गौरतलब है कि पूर्व की दो बैठकों में ज्यादातर भाजपा के विधायक शामिल थे। द लेंस के पास यह भी खबर है कि उक्त बैठक में सिर्फ विधायक नहीं पार्टी के कई दिग्गज ब्राह्मण नेता भी शामिल हुए।

यूपी सरकार में जहां मंत्रिमंडल से लेकर ब्यूरोक्रेसी, पुलिसिंग हर जगह राजपूतों का बोलबाला है अन्य जातियों में अन्य जातियों ने अपनी पहचान के लिए संगठित होकर शक्ति प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है।हालांकि इसे सामाजिक मेलजोल बताया जा रहा है । भाजपा नेतृत्व जो पहले भी योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली से संतुष्ट नहीं था इस स्थिति को संभालने में लगा हुआ है।

अगस्त 2025 में, विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान राजपुत विधायकों ने कुटुंब मिलन समारोह आयोजित किया था। इसमें भाजपा सहित विभिन्न दलों के करीब 40 ठाकुर विधायक शामिल हुए थे।

यह बैठक लखनऊ में हुई थी और इसे सामाजिक, पारिवारिक आयोजन बताया गया। गौरतलब है कि इस वक्त ठाकुर विधायकों की कुल संख्या 49 के आसपास है।

लिट्टी चोखे के आड में एकजुटता

इसके जवाब में 23 दिसंबर 2025 क शाम 7 बजे से आधी रात तक लखनऊ में कुशीनगर से भाजपा विधायक पीएन पाठक के आवास पर ब्राह्मणों का मिलन हुआ। इसे “सहभोज” (लिट्टी-चोखा डिनर) का नाम दिया गया, लेकिन ब्राह्मण समाज के मुद्दों पर चर्चा हुई। बताया जाता है कि इसमें 52 ब्राह्मण विधायक और एमएलसी शामिल हुए ।

ब्राह्मणों की अगली बैठक जनवरी 2026 में प्रस्तावित है। चूंकि भाजपा में 46 विधायक ब्राह्मण हैं इसलिए भाजपा संगठन के कान खड़े हो गए। आनन फानन में ऐलान किया गया कि इस तरह जातियों के आधार पर बैठकें करना ठीक नहीं है।

शिवपाल का खुला ऑफर

इस स्थिति पर समाजवादी पार्टी भी खुलकर भाजपा की खिंचाई कर रही है। सपा नेता शिवपाल यादव ने ब्राह्मणों को पार्टी में आने का ऑफर दिया। उधर भाजपा विधायकों ने बैठक को सामाजिक बताया है लेकिन माना जा रहा है कि पार्टी में जातिगत विभाजन बढ़ा है।

यह कहने में कोई दो राय नहीं है कि ब्राह्मण भाजपा के कोर वोटर रहे हैं और यूपी में भाजपा को लाने में उनका बड़ा योगदान रहा है। लेकिन 2024 लोकसभा चुनावों में उनके असंतोष के 2025 में प्रदेश अध्यक्ष पद पर कुर्मी नेता की नियुक्ति से ब्राह्मणों में दबदबा कम होने की भावना बढ़ी।

कांग्रेस के राज में था वर्चस्व

ब्राह्मण यूपी में 10-12 फीसदी वोट है। लेकिन इटावा के चर्चित चोटी कांड और भदोही, बनारस,जौनपुर, कानपुर में घाटी घटनाओं से ब्राह्मण समाज उद्वेलित है।

यह नाराजगी 2027 विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा के लिए चुनौती बन सकती है, लेकिन पार्टी इसे जातीय राजनीति का नकारात्मक नैरेटिव बता रही। कांग्रेस के समय सात बार यूपी में ब्राह्मण मुख्यमंत्री रहे हैं इसकी तुलना में योगी सरकार में ब्राह्मणों में अवसरहीनता को लेकर भी गहरा क्षोभ है।

शक्ति असंतुलन से खार खाए विधायक

सूत्रों के मुताबिक, सत्ता और प्रशासनिक नियंत्रण को लेकर असंतुलन की भावना ब्राह्मण विधायकों में लंबे समय से पनप रही है। उनका आरोप है कि सरकार में प्रतिनिधित्व होने के बावजूद नीति-निर्माण और महत्वपूर्ण फैसलों में उनकी भूमिका सीमित कर दी गई है।

कई ब्राह्मण विधायक दबी जुबां में यह भी कहते रहे है कि पुलिस–प्रशासन से जुड़े मामलों में उनकी शिकायतों पर अपेक्षित कार्रवाई नहीं होती, जिससे यह धारणा बनी कि प्रशासनिक ढांचा एक विशेष वर्ग के प्रभाव में काम कर रहा है।

बंद दरवाजों में जताई नाराजगी

राजनीतिक जानकार बताते हैं कि बीते कुछ वर्षों में ब्राह्मण नेताओं की नाराज़गी संगठनात्मक बैठकों और बंद दरवाज़ों के भीतर खुलकर सामने आई है। इसे केवल प्रतीकात्मक सम्मान बनाम वास्तविक सत्ता की लड़ाई के रूप में देखा जा रहा है।

सत्ता के भीतर संख्या के अनुपात में भागीदारी न मिलने को लेकर असंतुष्ट बताया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार मंत्रिमंडल में कुर्मी विधायकों को सीमित और अपेक्षाकृत कमजोर विभाग मिले। संगठनात्मक स्तर पर निर्णय प्रक्रिया में प्रभाव कम रहा।

कई क्षेत्रों में टिकट वितरण के दौरान कुर्मी नेताओं को दरकिनार किए जाने की शिकायतें सामने आईं है। नहीं भुला जाना चाहिए कि विनय कटियार जैसे कुर्मी नेताओं का पार्टी में वर्चस्व रहा है।

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