बीमारियों का इलाज दिव्य दरबार से? भूपेश बघेल

NFA@0298
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पिंटू दुबे, रायपुर/छत्तीसगढ़। CG Politics : छत्तीसगढ़ की राजनीति में धर्म और आस्था एक बार फिर सियासी बहस के केंद्र में आ गए हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के तीखे बयानों ने धार्मिक आयोजनों, साधु-संतों की भूमिका और इतिहास की व्याख्या को लेकर नई राजनीतिक लकीर खींच दी है। बयान के बाद कांग्रेस और बीजेपी आमने-सामने हैं, तो वहीं धार्मिक मंचों से भी पलटवार तेज हो गया है।

पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को सीधे निशाने पर लेते हुए आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ में धर्म के नाम पर बड़े आयोजनों के जरिए भारी धन संग्रह किया जा रहा है और इसके पीछे राजनीतिक मंशा साफ झलकती है। बघेल ने तंज कसते हुए सवाल उठाया कि अगर तथाकथित ‘दिव्य दरबार’ से बीमारियों का इलाज संभव है, तो फिर सरकारें मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों पर हजारों करोड़ रुपये क्यों खर्च कर रही हैं। उन्होंने कहा कि आस्था के नाम पर लोगों की भावनाओं से खेलना उचित नहीं है और समाज को विवेक के साथ आगे बढ़ना चाहिए।

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भूपेश बघेल ने यह भी स्पष्ट किया कि वे वर्षों से सनातन परंपराओं का पालन करते आ रहे हैं और उन्हें किसी बाहरी व्यक्ति से धर्म का पाठ पढ़ने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ की धरती कबीर साहेब और गुरु घासीदास की विचारधारा से सिंचित रही है, जहां आस्था के साथ-साथ सामाजिक चेतना और तर्क को सर्वोपरि माना गया है। इसी मुद्दे पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव के बयान ने बहस को और हवा दे दी, जब उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी दौर में हिंदुओं के सुनियोजित दमन के ठोस प्रमाण नहीं मिलते और शासन व्यवस्था सहयोग पर आधारित रही है।

कांग्रेस नेताओं के इन बयानों पर बीजेपी ने तीखा पलटवार किया है। बीजेपी ने कांग्रेस पर सनातन विरोध और तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया है। वहीं पं. धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने भी भूपेश बघेल के बयान का जवाब देते हुए कहा कि अगर हिंदू समाज को एकजुट करने की कोशिश को अंधविश्वास कहा जा रहा है, तो ऐसी सोच रखने वालों को आत्ममंथन करना चाहिए। कुल मिलाकर धर्म, इतिहास और राजनीति के इस टकराव ने छत्तीसगढ़ की सियासत को एक बार फिर गरमा दिया है और आने वाले दिनों में यह बहस और तेज होने के संकेत दे रही है।

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