‘प्राइवेट पार्ट पकडऩा रेप नहीं’, अदालत की ऐसी टिप्पणियों पर सख्त सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं से जुड़े यौन अपराध मामलों में अदालतों की असंवेदनशील टिप्पणियां परिवार और पूरे समाज पर ‘डर पैदा करने वाला असर’ डाल सकती हैं।

लेकिन कई बार हाई कोर्ट की कुछ टिप्पणियों ने महिलाओं की गरिमा को चोट पहुंचाई है।

कभी कहा गया कि बिना ‘स्किन-टू-स्किन’ संपर्क के यौन उत्पीडऩ नहीं होता। कहीं नाबालिग को ही अपनी ‘इच्छाओं पर नियंत्रण’ रखने की नसीहत दी गई।

एक फैसले में महिला को ‘नाजायज पत्नी’ और ‘वफादार मालकिन’ तक कहा गया।

ऐसी टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट कई बार सख्त हुआ। अदालत ने साफ कहा कि महिलाओं की गरिमा से कोई समझौता नहीं हो सकता। भाषा और न्याय, दोनों संवेदनशील होने चाहिए।

‘प्राइवेट पार्ट पकडऩा रेप नहीं..’

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 मार्च, 2025 को रेप की कोशिश के एक मामले में फैसला सुनाया था।

हाई कोर्ट का कहना था किसी नाबालिग लडक़ी के ब्रेस्ट पकडऩा, उसके पजामे की डोरी तोडऩा और कपड़े उतारने का प्रयास करना, रेप की कोशिश साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

कोर्ट ने अभियुक्तों पर कम गंभीर धाराएं लगाने के लिए भी कहा था। हाई कोर्ट के इस फैसले का कानूनी विशेषज्ञों, राजनेताओं और अलग-अलग क्षेत्रों के एक्सपर्ट्स ने विरोध किया था।

सोमवार, 8 दिसंबर को फैसले पर खुद संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। कोर्ट ने कहा कि यौन शोषण के मामलों में निचली अदालतों की संवेदनहीन टिप्पणियां पीडि़त, उनके परिवार और पूरे समाज पर ‘डर पैदा करने वाला असर’ डाल सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह निचली अदालतों के लिए ऐसी टिप्पणियों पर व्यापक दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर सकता है।

चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा, ‘हम दिशानिर्देश जारी करने पर विचार कर सकते हैं। ऐसी टिप्पणियां पीडि़तों और उनके परिवारों को शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर कर सकती हैं और समाज में भी इससे गलत संदेश जाता है।’

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील शोभा गुप्ता और अन्य वकीलों ने बताया कि हाल के दिनों में कई हाई कोर्ट्स ने यौन शोषण मामलों में ऐसी ही आपत्तिजनक मौखिक और लिखित टिप्पणियां की हैं।

पीठ ने यह भी कहा कि वह इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश रद्द करेगी और केस का ट्रायल जारी रहने दिया जाएगा।

‘यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए’

अगस्त, 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट को कड़ी नसीहत देते हुए कहा था कि नाबालिग से जुड़े यौन अपराधों में अदालतों को असंवेदनशील टिप्पणियां नहीं करनी चाहिए।

कोर्ट का कहना था कि उन्हें फैसलों में ऐसी बातों से बचना चाहिए, क्योंकि इससे पीडि़तों और समाज पर गलत असर पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट की दो-जजों की पीठ ने साफ कहा था कि पॉक्सो कानून में ‘आपसी सहमति’ जैसी कोई छूट नहीं है और नाबालिग की सहमति का दावा भी अपराध को खत्म नहीं कर सकता।

अदालत ने कलकत्ता हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें एक व्यक्ति को रेप और अपहरण के गंभीर आरोपों से बरी कर दिया गया था।

हालांकि जिला अदालत ने उसे आईपीसी की कई धाराओं और पॉक्सो की धारा 6 के तहत बीस साल की सजा दी थी।

हाई कोर्ट ने अपने फैसले में किशोरियों के यौन व्यवहार पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि ‘लड़कियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए।’

इस टिप्पणी को सुप्रीम कोर्ट ने आपत्तिजनक और गलत बताया था। कोर्ट ने निर्देश दिया कि भविष्य में ऐसे मामलों में फैसले लिखते समय उचित भाषा के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाएं और पुनर्वास प्रक्रिया में मदद करने के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई जाए।

यह मामला 2018 में शुरू हुआ था। पश्चिम बंगाल में एक 14 साल की लडक़ी लापता हो गई थी। बाद में पता चला कि लडक़ी, 25 साल के एक व्यक्ति के साथ रह रही है।

लडक़ी की मां ने अपहरण और रेप का मामला दर्ज कराया था। 2023 में हाई कोर्ट की सुनवाई में लडक़ी ने कहा था कि वह अपनी इच्छा से उसके साथ गई थी।

‘नाजायज पत्नी’ और ‘वफादार मालकिन’

फरवरी, 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले की कड़ी आलोचना की।

साल 2004 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने ‘भाऊसाहेब बनाम लीलाबाई’ केस में मुआवजे का आदेश देने से मना करते हुए दूसरी पत्नी के लिए ‘नाजायज पत्नी’ और ‘वफादार मालकिन’ जैसे अपमानजनक और महिला-विरोधी शब्दों का इस्तेमाल किया था।

लाइव लॉ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट कहना था कि ऐसी भाषा न सिर्फ असंवेदनशील है, बल्कि उस महिला के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी करती है।

अदालत ने याद दिलाया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति को गरिमा के साथ जीने का अधिकार है और किसी महिला को ऐसे शब्दों से संबोधित करना उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाता है।

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि ये दुख की बात है कि ऐसी भाषा एक हाई कोर्ट की फुल बेंच के फैसले में इस्तेमाल हुई।

अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि ऐसी भाषा कभी भी वैवाहिक विवादों में पुरुषों के लिए इस्तेमाल नहीं की जाती, लेकिन महिलाओं के मामले में ऐसा देखा जाता है।

पीठ यह तय करने के लिए सुनवाई कर रही थी कि क्या हिंदू मैरेज एक्ट, 1955 की धारा 25 के तहत किसी पति या पत्नी को स्थायी भरण-पोषण मिल सकता है, भले ही शादी को बाद में अवैध घोषित कर दिया जाए,

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ‘हैंडबुक ऑन कंबैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स’ भी जारी की थी। इसमें बताया गया है कि अदालतों, वकीलों और जजों को महिला-विरोधी भाषा से बचना चाहिए।

इसमें यह भी बताया गया है कि इस तरह के मामलों में किस तरह की भाषा का प्रयोग करना चाहिए, ताकि किसी भी महिला के साथ अनजाने में भी भेदभाव न हो।

‘महिला ने खुद ही मुसीबत को न्योता दिया’

10 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रेप के एक मामले में विवादित टिप्पणी की थी।

कोर्ट ने अभियुक्त को ज़मानत देते हुए कहा था कि महिला ने खुद ही मुसीबत को न्योता दिया था, उसके साथ जो भी हुआ है वो उसके लिए खुद जि़म्मेदार है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी आर गवई और एजी मसीह की बेंच ने हाई कोर्ट के इस फैसले पर आपत्ति जताई थी और सतर्क रहने की नसीहत भी दी थी।

जस्टिस गवई का कहना था, ‘ज़मानत दी जा सकती हैज् लेकिन यह क्या चर्चा है कि उसने खुद मुसीबत को न्योता दिया? ऐसी बातें कहते समय बहुत सावधानी रखनी चाहिए, खासकर हमारी तरफ (जजों) से। कहीं एक शब्द इधर-उधर हो गया तो।’

इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई जस्टिस संजय कुमार कर रहे थे। उत्तर प्रदेश में एमए की एक छात्रा ने अपने पुरुष मित्र पर रेप का आरोप लगाया था।

यह मामला सितंबर 2024 का है। जस्टिस संजय कुमार ने इस मामले में अभियुक्त की याचिका पर सुनवाई करते हुए जमानत दे दी थी।

कानूनी मामलों पर ख़बरें प्रकाशित करने वाले पोर्टल ‘बार एंड बेंच’ के मुताबिक़ सितंबर, 2024 में छात्रा अपनी तीन महिला मित्रों के साथ दिल्ली के एक बार में गई थी। जहां उनकी मुलाकात जान- पहचान के कुछ पुरुषों से हुई, जिनमें से एक अभियुक्त भी था।

छात्रा ने पुलिस में दर्ज शिकायत में कहा कि वो शराब के नशे में थी और उस समय पर भी अभियुक्त उसके करीब आ रहा था। वो लोग सुबह तीन बजे तक बार में थे और अभियुक्त बार-बार छात्रा से उसके साथ चलने के लिए कहता रहा।

छात्रा ने बताया कि अभियुक्त के कई बार कहने पर वह उसके घर आराम करने के लिए जाने को तैयार हो गई, लेकिन अभियुक्त उसे अपने घर नोएडा ले जाने के बजाय अपने रिश्तेदार के फ्लैट में ले गया।

लडक़ी ने बताया कि यहां लडक़े ने उसके साथ रेप किया। छात्रा की शिकायत पर पुलिस ने एफ़आईआर दर्ज करते हुए अभियुक्त को दिसंबर 2024 में गिरफ़्तार कर लिया था।

अभियुक्त ने ज़मानत की अर्जी में अदालत से कहा कि महिला को उस वक़्त सहारे की ज़रूरत थी। वो ख़ुद ही उनके साथ चलने को तैयार हो गईं। अभियुक्त ने रेप के आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि दोनों के बीच यौन संबंध सहमति से बने।

ज़मानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा, ‘अदालत मानती है कि अगर पीडि़ता के आरोपों को सही मान भी लिया जाए तो भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि महिला ने ख़ुद ही मुसीबत को न्योता दिया और घटना के लिए वो ख़ुद भी जि़म्मेदार है।’

‘महिला ने अपने बयान में भी कुछ यही बातें कही हैं। उनकी मेडिकल जांच में भी डॉक्टर ने यौन हमले को लेकर कोई भी बात नहीं रखी।’

जस्टिस संजय कुमार ने ये भी कहा, कि महिला पोस्ट ग्रेजुएट है और अपने कृत्य की नैतिकता और उसकी अहमियत को समझने में सक्षम है।

उनके मुताबिक़, ‘सारे तथ्य और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, साथ ही अपराध की प्रकृति, सबूत, दोनों पक्षों के बयान को ध्यान में रखते हुए मैं समझता हूं कि याचिकाकर्ता को ज़मानत पाने का हक़ है। लिहाज़ा ज़मानत की अनुमति दी जाती है।’

‘स्किन टू स्किन’ संपर्क नहीं हुआ

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के एक विवादित फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी।

हाई कोर्ट का कहना था कि बिना कपड़े उतारे स्तनों के साथ छेड़छाड़ पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीडऩ नहीं है।

लाइव लॉ के मुताबिक एक 39 साल के व्यक्ति को 12 साल की लडक़ी से यौन उत्पीडऩ का दोषी ठहराया गया था, लेकिन कोर्ट ने दोषी व्यक्ति को सिर्फ धारा 354 के तहत एक साल की सज़ा सुनाई।

कोर्ट का कहना था कि यह आईपीसी की धारा 354 के तहत अपराध है, क्योंकि इस मामले में ‘स्किन टू स्किन’ संपर्क नहीं हुआ है।

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि पॉक्सो कानून के तहत अपराध मानने के लिए ‘स्किन-टू-स्किन’ संपर्क जरूरी नहीं है।

अदालत ने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट ने कानून को बहुत संकीर्ण तरीके से समझा है। कोर्ट कहना था कि पॉक्सो कानून का मकसद बच्चों को यौन उत्पीडऩ से बचाना है। इसलिए अगर कोई शारीरिक संपर्क यौन इरादे से किया गया है, तो वह पॉस्को के तहत अपराध है और इसमें ‘स्किन-टू-स्किन’ संपर्क की कोई शर्त नहीं है।

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए कहा था कि अगर इस व्याख्या को मान लिया गया, तो कोई व्यक्ति दस्ताने पहनकर भी बच्चे का यौन शोषण कर सकता है और बच सकता है। (bbc.com/hindi)



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