चीन की आंखों का कांटा क्यों बना है अरुणाचल प्रदेश
30-Nov-2025 10:44 PM
अरुणाचल प्रदेश के ग्रामीण इलाके में बसे इन लोगों की रिहाइश पर सियांग नदी पर बांध बनाने वाले प्रोजेक्ट से डूबने का खतरा है, जिसे लेकर समुदाय ने अगस्त 2025 में विरोध जताया।
पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे पर दशकों से भारत और चीन के आपसी संबंधों में तनाव रहा है। चीन हमेशा इसके दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करता रहा है। दोनों देश इसे लेकर एक बार फिर आमने सामने हैं।
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी का लिखा-
पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे पर दशकों से भारत और चीन के आपसी संबंधों में तनाव रहा है। चीन हमेशा इसके दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करता रहा है। अब इस मुद्दे पर दोनों देश एक बार फिर आमने सामने हैं।
अरुणाचल प्रदेश के मालिकाना हक के सवाल भारत और चीन के बीच हमेशा तनातनी रही है। करीब एक महीने से दोनें देशो के बीच कुछ शांति थी। लेकिन अब अरुणाचल प्रदेश की एक महिला को शंघाई एयरपोर्ट पर कथित रूप से परेशान करने और घंटों बेवजह रोके जाने के कारण यह विवाद एक बार फिर उभर आया है।
ताजा विवाद
बीते सप्ताह भारतीय पासपोर्ट पर लंदन से जापान जाने वाली अरुणाचल प्रदेश की एक महिला प्रेमा वांगजोम थोंगडोक को इमिग्रेशन अधिकारियों ने चीन के शंघाई एयरपोर्ट पर रोक लिया था। उसके बाद उसे कहा गया कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा है। इसलिए उसका भारतीय पासपोर्ट वैध नहीं है। उसे चीनी पासपोर्ट के लिए आवेदन करना चाहिए या फिर चाइना ईस्टर्न एयरलाइंस का टिकट खरीदना चाहिए। घंटों एयरपोर्ट पर रोके जाने के कारण महिला की कनेक्टिंग फ्लाइट छूट गई। उसने बाद में किसी तरह चीन स्थित भारतीय दूतावास से संपर्क किया और करीब घंटे भर बाद उच्चायोग के अधिकारी एयरपोर्ट पहुंचे और उनको बाहर निकाला।
प्रेमा ने भारतीय विदेश मंत्रालय को पत्र भेज कर अपने साथ घटी घटना की विस्तार से जानकारी दी है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने भी इस घटना की निंदा करते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन करार दिया है। जानकार सूत्रों के मुताबिक, भारत ने इस मुद्दे पर चीन सरकार के समक्ष अधिकृत रूप से विरोध दर्ज कराया है। सरकार ने चीनी अधिकारियों की इस हरकत को सिविल एविएशन से जुड़े शिकागो और मॉन्ट्रियल कन्वेंशन का उल्लंघन करार दिया है।
लेकिन दूसरी ओर, चीन अपने इस दावे पर अड़ा है कि अरुणाचल प्रदेश चीन का हिस्सा रहा है और उसका नाम जांगनान है। चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पत्रकारों के सवालों के जवाब में कहा कि जांगनान चीन का हिस्सा है। हमने कभी अवैध रूप से बसाए गए अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं दी है। उनका कहना था कि तय कानूनों के तहत ही उस महिला यात्री की जांच की गई और उनके अधिकारों का उल्लंघन नहीं किया गया।
अरुणाचल प्रदेश को लेकर विवाद नया नहीं
वैसे अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच विवाद कोई नया नहीं है। चीन ने इससे पहले वर्ष 2005 में अरुणाचल प्रदेश के लोगों को स्टेपल वीजा देने की नीति अपनाई थी। उसकी दलील थी कि वह अरुणाचल के लोगों को चीनी मानता है। इसलिए उनको नियमित वीजा नहीं दिया जा सकता। उस दौरान बाकी राज्यों में रहने वाले भारतीयों को नियमित वीजा जारी होते रहे। उस मुद्दे पर काफी विवाद हुआ था। भारत ने यह कहते हुए स्टेपल वीजा को मानने से इंकार कर दिया था कि इसका मतलब यह स्वीकार करना होगा कि अरुणाचल के लोग भारतीय नागरिक नहीं हैं।
वर्ष 2013 में युवा विश्व तीरंदाजी चैंपियनशिप में अरुणाचल प्रदेश के दो तीरंदाजों को स्टेपल वीजा जारी होने के बाद भारत ने उनको चीन जाने से रोक दिया था। इसी तरह करीब दो साल पहले जुलाई, 2023 में चीन के चेंगदू में होने वाले विश्व विश्वविद्यालय खेलों में शामिल होने के लिए मार्शल आर्ट्स के तीन एथलीटों को भी ऐसा ही वीजा जारी किया गया था। इसके विरोध में पूरी भारतीय टीम ने ही उस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया था। इसके विरोध में खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने भी खेलों के उद्घाटन के लिए चीन का दौरा रद्द कर दिया था।
शुरुआत कब और कैसे हुई
भारत और चीन के बीच अरुणाचल प्रदेश के मुद्दे पर आखिर विवाद क्यों है और इसकी शुरुआत कब से हुई? राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इसकी जड़ें ब्रिटिश शासन में छिपी हैं। मार्च 2014 में शिमला सम्मेलन के दौरान मैकमोहन लाइन की स्थापना हुई थी। सम्मेलन में तिब्बत, चीन और ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत हुई थी। हालांकि सम्मेलन में शामिल चीनी प्रतिनिधिमंडल ने मैकमोहन लाइन को स्वीकार नहीं करते हुए मुख्य समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए थे।
लेकिन इसके बावजूद मैकमोहन लाइन को ही भारत और तिब्बत के बीच सीमा माना गया। देश की आजादी के बाद से ही भारत इसे चीन के साथ अपनी सीमा मानता रहा है। वर्ष 1937 में सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से प्रकाशित एक नक्शे में मैकमोहन लाइन को तिब्बत के साथ अधिकृत सीमा के तौर पर दिखाया गया था। लेकिन दिक्कत यह है कि चीन मैकमोहन लाइन को नहीं मानता। वह कई बार भारत से नए सिरे से बातचीत कर सीमा निर्धारित करने का दबाव देता रहा है। अक्सर दबाव बढ़ाने के मकसद से वह कभी अरुणाचल प्रदेश के कई इलाकों के नाम बदलता रहता है तो कभी उसे अपने नक्शे में दिखाता रहा है। चीन सरकार प्रधानमंत्री से लेकर बौद्ध नेता दलाई लामा के अरुणाचल दौरे पर भी विरोध जताता रहा है।
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बीते साल सीमावर्ती इलाके तवांग को साल के बारहों महीने देश के बाकी हिस्सों से जोडऩे वाली सेला टनल के निर्माण और उसके उद्घाटन के लिए शीर्ष नेताओं के दौरे पर भी उसने आपत्ति जताई थी। अरुणाचल प्रदेश की 3,488 किमी लंबी सीमा तिब्बत से जुड़ी है। चीनी सैनिकों के अक्सर अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ और स्थानीय युवकों के अपहरण की खबरें भी आती रही हैं। इलाके में कई बार दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें भी हो चुकी हैं।
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ प्रोफेसर जीवन लामा डीडब्ल्यू से कहते हैं, ‘अरुणाचल प्रदेश के दक्षिण तिब्बत का हिस्सा होने के चीन के दावों में कोई दम नहीं है। मैकमोहन लाइन के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है।’ लामा कहते हैं कि चीन सोची-समझी रणनीति के तहत दबाव बनाने की नीयत से ही ऐसा करता रहा है। इसी वजह से हाल के वर्षो में वह अरुणातच से सटे सीमावर्ती इलाको में बड़े पैमाने पर आधारभूत ढांचे का विकास करता रहा है। इनमें हाइवे से लेकर बुलेट ट्रेन और कई नए बांधों का निर्माण शामिल है। लेकिन भारत ने भी जवाबी रणनीति अपनाई है। (dw.com/hi)

