बिहार में एनडीए की सुनामी

NFA@0298
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बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ने दो तिहाई से भी ज्यादा सीटों के साथ बहुमत हासिल कर रिकॉर्ड बना दिया है। दूसरी ओर नतीजे दिखा रहे हैं कि महागठबंधन को राज्य की जनता ने बुरी तरह से नकार दिया है। ऐसी जबर्दस्त जीत की उम्मीद, तो शायद भाजपा के रणनीतिकारों ने भी नहीं की थी।

खुद केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने दावा किया था कि एनडीए को 160 से अधिक सीटें मिलेंगी, लेकिन उसने 243 सीटों की विधानसभा में 200 का आंकड़ा पार कर लिया है। यही नहीं, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई है। यह वाकई कमाल की बात है कि लगातार बीस साल से सत्ता पर काबिज जनता दल (यू) नेता नीतीश कुमार पर बिहार के लोगों ने एक बार फिर भरोसा जताया है।

साफ है, विपक्षी महागठबंधन नीतीश की 20 साल की सत्ता और केंद्र की मोदी सरकार की 11 साल की सत्ता के खिलाफ किसी तरह का कथानक बनाने में नाकार रहा।

बिहार के जनादेश से निकले संदेश दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ हैं। पहला, इस चुनाव में महिला मतदाताओं की अहम भूमिका रही है, जिन्होंने पुरुषों की तुलना में आठ फीसदी अधिक मतदान किया था। नतीजे दिखा रहे हैं कि इसका लाभ एनडीए को हुआ है, और हैरत नहीं कि इसमें ऐन चुनाव के बीच नीतीश सरकार द्वारा महिलाओं के खाते में ट्रांसफर किए गए एकमुश्त दस हजार रुपये की भी अहम भूमिका हो।

दरअसल महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में महिलाओं के खातों में सीधे हस्तांतरित किए गए धन का असर देखा जा चुका है।

दूसरा, यह कि प्रधानमंत्री मोदी से लेकर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने चुनाव की शुरुआत से जिस तरह से लालू-राबड़ी के पंद्रह साल के शासन के कथित ‘जंगलराज’ को मुद्दा बनाए रखा, उसकी काट महागठबंधन नहीं तलाश पाया। यहां तक कि महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव के हर परिवार को सरकारी नौकरी देने के वादे पर भी लोगों ने यकीन नहीं किया और वह खुद बड़ी मुश्किल से चुनाव जीत सके।

तीसरा, इस चुनाव में पूर्व चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर को लेकर काफी चर्चाएं थीं, लेकिन उनकी पार्टी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई है, लेकिन, उसे मिले वोट का विश्लेषण किया जाना अभी बाकी है। इसके बावजूद यह तो साफ है कि उनके होने या न होने से नतीजों पर शायद ही बड़ा फर्क आता।

चौथा, ये नतीजे दिखा रहे हैं कि बिहार में कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा जोरशोर से उठाया जा रहा ‘वोट चोरी’ का मुद्दा पूरी तरह से बेअसर रहा। गौर किया जाना चाहिए कि ये चुनाव राज्य में मतदाता सूची के पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद हुए हैं, जिसे लेकर इंडिया गठबंधन ने आरोप लगाया था कि यह कवायद भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए की गई है।

यहां तक कि ऐन चुनाव के बीच राहुल ने अपना बहुचर्चित ‘एच बम’ का धमाका भी किया था, इसके बावजूद उनकी कांग्रेस पार्टी को राज्य में अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, तो क्या जमीनी स्तर पर कांग्रेस की कोई तैयारी ही नहीं थी?

पांचवा, संदेश विपक्षी इंडिया गठबंधन के नेताओं के लिए है कि उनके सामने हर तरह के संसाधनों से लैस भाजपा है, जिसे प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने चौबीस घंटे काम करने वाली चुनावी मशीन में बदल दिया है। उससे मुकाबला करने के लिए इंडिया गठबंधन को अपनी रणनीति में व्यापक बदलाव लाने की जरूरत है; तदर्थ तरीके से काम करते हए चुनाव नहीं लड़ा जा सकता।



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